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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

कृतज्ञ हुआ हूँ। आप मेरा उपकार क्यों और किस लिए मानें? और यदि आप मेरा उपकार मानें ही, तो उसे मैं सुन नहीं सकता। मुझे आशा है कि विभिन्न समितियोंको जो कार्य सौंपा गया है वे उसे पूरा करेंगी। पुरुषार्थके सम्मुख कठिनाइयाँ टिक नहीं सकतीं। समयके अभावके कारण सभाके समक्ष लम्बे भाषणकी माँग को मैं स्वीकार नहीं कर सका उसके लिए मुझे खेद है। मैं आप सब भाइयों और बहनोंको धन्यवाद देता हूँ। मैं अपना जीवन तभी सार्थक समझूँगा जब भारतके लिए अपने प्राण उत्सर्ग कर पाऊँ।

[गुजरातीसे]
गुजराती, २८-१०-१९१७

११. भाषण : जीवदया परिषद् में[१]

भड़ौंच
अक्तूबर २१, १९१७

जिस दिनसे मैं श्री आनन्दशंकर ध्रुवके सम्पर्कमें आया हूँ उसी दिनसे उनपर मुग्ध हूँ। वे निस्सन्देह गुजरातके एक अनमोल रत्न हैं। सम्भवत: गुजरात उन्हें अभी पूर्ण रूपसे नहीं जानता। इस संस्थाने जब श्री ध्रुवको अध्यक्ष-पद प्रदान किया तो मुझे लगा कि यह संस्था भी बड़ी प्रतिष्ठित होनी चाहिए। श्री ध्रुवने समस्त हिन्दू संसारके सम्मुख सिद्ध कर दिया है कि 'अहिंसा परमोधर्मः' वचन सारे भारतका है। जैन और हिन्दू धर्मके बीच ऐसा कोई भेद नहीं है कि उन्हें भिन्न माना जाये। गौतम बुद्धका बौद्ध धर्म वही बात कहता है कि जो हिन्दू धर्म कहता है।

श्री ध्रुव केवल गुजरातके ही रत्न नहीं हैं, वे सारे भारतवर्षके रत्न हैं। वे गुजरातमें लोगोंके सामने नहीं आये इसलिए भारतीय जनतामें सुप्रसिद्ध नहीं हो पाये। वे बड़े ही समर्थ विद्वान् हैं। यह मैं उनके भाषणोंसे ही समझ गया हूँ। उनकी कार्य-कुशलता व्यावहारिक जीवनके लिए अत्यन्त आवश्यक है। संसारी जीवनका मुझे भी बड़ा अनुभव है और मैंने सहन भी बहुत किया है। श्री ध्रुवके शुद्ध अन्तःकरणसे निकले उद्गार मुझे बड़े प्रिय लगने लगे हैं और मुझमें उनका सत्संग करनेकी आकांक्षा जाग गई है।

श्री ध्रुव गुदड़ीके लाल हैं। उन्हें प्राचीन और अर्वाचीन हिन्दू जीवनका अच्छा अनुभव है। आजकी जो पीढ़ी ऐशो-आरामके वातावरणमें पलकर बड़ी हुई और जो मनसूबोंके दुर्ग बाँधती हुई [आधुनिक] सभ्यताके प्रवाहमें, बिना विचारे बह चली है, उसे समुचित और योग्य स्थानपर पहुँचानेके लिए श्री ध्रुव नौका-रूप हैं। वे ऐसे नेता हैं। बुजुर्ग लोग फूलोंके महत्त्वको जानते हैं। इसीलिए उन्होंने भी [नई पीढ़ीकी] ठीक कद्र की है और युवकोंके साथ मिलकर अपने विचारोंको उनमें किस प्रकार दृढ़तापूर्वक प्रतिष्ठित किया जाये इस सम्बन्धमें अपनी कार्य-कुशलताका परिचय दिया है।

 
  1. सम्मेलनके दूसरे दिन गांधीजीने अध्यक्ष प्रो॰ आनन्दशंकर ध्रुवके प्रति धन्यवादका प्रस्ताव किया।