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पत्र : वाणिज्य और उद्योग विभागके सचिवको


जीवदया मण्डल श्री ध्रुवको अपने अध्यक्ष-पदपर मनोनीत कर सका है, यह इस बातका प्रमाण है कि यह संस्था बड़े सुदृढ़ पायेपर कामकर सकी है और जीवदयाके अपने सिद्धान्तोंका प्रचार भविष्यमें भी जनताके बीच अधिकाधिक कर सकेगी तथा जनमतको इसके पक्षमें तैयार कर सकेगी। इतना कहकर मैं अध्यक्ष महोदयके प्रति धन्यवादका प्रस्ताव पेश करता हूँ। मुझे उम्मीद है कि आप सब इसका समर्थन करेंगे।

[गुजरातीसे]
मुम्बई समाचार, २३-१०-१९१७

१२. पत्र : वाणिज्य और उद्योग विभागके सचिवको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
अक्तूबर ३१, १९१७

सचिव

वाणिज्य और उद्योग विभाग
दिल्ली

महोदय,

इसके साथ एक पत्रकी[१] नकल भेजता हूँ जो मैंने अभी हालमें समाचारपत्रोंको रेलके तीसरे दर्जेके यात्रियोंके सम्बन्धमें लिखा था।

ये कष्ट दो तरहके हैं: एक वे जिनका कारण स्वयं यात्रियोंकी लापरवाही है और दूसरे वे जिनको केवल रेल-कम्पनियाँ ही दूर कर सकती है। इनके भी दो हिस्से किये जा सकते हैं—कुछका निराकरण कोई बड़ा खर्च उठाये बिना किया जा सकता है और कुछका निराकरण बहुत ज्यादा रुपया खर्च करनेपर ही हो सकता है।

मैं स्वीकार करता हूँ कि जबतक युद्ध चलता है तबतक दूसरे वर्गके कष्टोंको दूर करनेका कोई प्रभावकारी उपाय नहीं किया जा सकता। इन कष्टोंका कारण स्थानको अपर्याप्तता है। मैं इस सम्बन्धमें सुझाव देना चाहता हूँ कि टिकट बाँटनेमें कुछ कमी अवश्य की जा सकती है और गार्डों एवं अन्य अधिकारियोंको यात्रियोंके यातायातको व्यवस्थित करनेके निर्देश भी दिये जा सकते हैं। स्थिति यह है कि ताकतवर यात्री अधिकारियोंके प्रबन्ध या नियन्त्रणके बिना ही स्थान प्राप्त कर लेते हैं और कमजोर यात्री प्रायः रह जाते हैं। अधिकारियोंको यात्रियोंके यातायातको व्यवस्थित करनेके निर्देश देना ही काफी नहीं है; बल्कि उनका समय-समयपर डिब्बोंकी हालतकी जाँच करना और यह देखना भी लाजिमी कर देना चाहिए कि कोई यात्री अन्य यात्रियोंको असुविधामें डालकर ज्यादा जगहपर कब्जा किये तो नहीं बैठा है।

 
  1. देखिए खण्ड १३, पृष्ठ ५५८-६२।