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भाषण : प्रथम गुजरात राजनीतिक परिषदमें

अधूरी समझी जायेगी। हमारी उम्मीद है कि सरकार पूर्ण उदारता दिखाकर प्रजाका चित्त जीत लेगी और उसे अपना बना लेगी।

श्री मॉण्टेग्यु साहब आ रहे हैं। उनकी सेवामें पेश करनेके लिए प्रार्थनापत्र[१] तैयार किया गया है और उसपर हस्ताक्षर किये जा रहे हैं। इस प्रार्थनापत्रका प्रधान हेतु [स्वराज्यके बारेमें] प्रजाको शिक्षित करना है। स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए अक्षर-ज्ञानकी आवश्यकता है, यह कहना इतिहासका अज्ञान प्रकट करता है। प्रजामें यह भावना भरने के लिए कि हमें अपना कामकाज स्वयं करना है, अक्षर-ज्ञानकी आवश्यकता नहीं है। इस विचारका होना ही काफी है। सैकड़ों अपढ़ राजाओंने अच्छी तरह राज-काज किया है। उपर्युक्त भावना प्रजामें कहाँ तक है, यह देखना और यदि न हो तो उसे उत्पन्न करना—यह उस प्रार्थनापत्रका उद्देश्य है। इसलिए यह जरूरी है कि इस प्रार्थनापत्रपर लाखों स्त्री-पुरुष उसका मतलब समझकर हस्ताक्षर करें। श्री मॉण्टेग्युपर ऐसे प्रार्थनापत्रका प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा।

कांग्रेस और मुस्लिम लीग द्वारा स्वीकृत योजनामें फेरफार करनेका किसीको अधिकार नहीं है, इसलिए इसके गुण-दोषोंका विचार करनेका सवाल ही नहीं उठता। प्रस्तुत प्रयोजनकी दृष्टिसे अभी तो हमें इतना ही करना है कि प्रजाके नेताओंने बहुत विचारपूर्वक जो योजना बनायी है उसे हम अच्छी तरह समझें और ऐसा प्रयत्न करें जिससे उसका अमल हो सके।

यह योजना[२]—स्वराज्य नहीं है, स्वराज्यकी नसैनीपर चढ़ते हुए पैर रखनेकी जगह है। कुछ अंग्रेज आलोचक कहते हैं कि हमें—भारतीयोंको—स्वराज्य भोगनेका अधिकार नहीं; क्योंकि जो लोग स्वराज्य माँगते हैं उनमें हिन्दुस्तानकी रक्षा करनेकी शक्ति ही नहीं है। वे पूछते हैं कि क्या अंग्रेज, सिपाहियोंकी तरह, भारतकी रक्षा करेंगे और भारतीय प्रजा शासन-कार्य चलायेगी। यह प्रश्न हास्यजनक और दुःखद है। हास्यजनक तो यों है कि हमारे अंग्रेज मित्र अपनेको हमसे जुदा मानते हैं। हमारी कल्पना तो यह है कि हम ब्रिटेनके साथ रहकर स्वराज्य भोगेंगे। हम यह नहीं चाहते कि जो अंग्रेज यहाँ बस गये हैं वे यहाँसे चले जायें। बल्कि हम तो उन्हें स्वराज्यके हिस्सेदार मानते हैं। स्वराज्यके संगठनमें यदि उनके हिस्सेमें सिपाहीगीरी आये तो उन्हें शिकायतका कारण नहीं रहता। परन्तु उनका यह कहना कि हम सिपाहीगीरीमें भाग न लेंगे, उतावलापन है। भारतकी वृत्ति जिस समय सैनिक शक्ति प्राप्त करनेकी होगी उस समय वह थोड़े ही समय में प्राप्त हो जायेगी। संहार करनेकी शक्ति कठोर वृत्तिका परिणाम है और कठोरताका पोषण करने में देर नहीं लगती। वह घासकी तरह उग सकती है। प्रश्न दुःखद इसलिए है कि वह स्मरण दिलाता है कि आजतक सरकारने हमें सैनिक शिक्षासे वंचित रखा है। यदि उसने हमें सैनिक शिक्षा देना चाहा होता तो आजतक शिक्षित-वर्गकी एक बड़ी सेना तैयार हो गई होती। इस युद्धमें शिक्षित-दलने

 
  1. २६ नवम्बरको कांग्रेस-लीगके शिष्टमण्डल द्वारा भारत-मंत्री तथा वाइसरॉयको दिया गया था। देखिए परिशिष्ट १।
  2. देखिए परिशिष्ट २।