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भाषण : प्रथम गुजरात राजनीतिक परिषदमें

भेजता है उस देशमें गरीबी न हो तो क्या हो? जिस देशमें ब्याह-शादीपर होनेवाले खर्चको फजूल-खर्ची कहते हैं उसे गरीब ही कहना होगा। जो देश प्लेग आदि रोगोंको समाप्त करने योग्य खर्च नहीं कर सकता उसकी स्थिति भिखारी-जैसी ही है। जिस देशके लोग कड़े जाड़ेमें ऊनी वस्त्रोंके अभावमें सोने-जैसा बहुमूल्य खाद जलाकर शीतनिवारण करते हैं, जिस देशके अधिकारी-वर्गकी तनख्वाहोंका बड़ा हिस्सा बाहर देशोंमें खर्च किया जाता है वह देश यदि कंगाल रहे और उस देशकी प्रजा दिनपर-दिन दरिद्र होती जाये तो आश्चर्य ही क्या है। समस्त भारतमें घूमते हुए मैंने कहीं प्रजामें श्री और सम्पन्नता नहीं देखी। मध्यम श्रेणीके लोगोंकी बड़ी दुर्दशा है। कनिष्ठ श्रेणीके लोगोंके पास बस नीचे धरती और ऊपर आसमान है। उनके लिए अच्छा दिन ही नहीं है। भारतका धन पृथ्वीके पेटमें गड़ा हुआ है या जेवरोंमें पड़ा हुआ है, यह कोरी कल्पना है। वह नगण्य है। लोगोंकी आमदनी तो बढ़ी नहीं, खर्च अलबत्ता बढ़ गये हैं। यह दशा सरकारने जान-बूझकर पैदा की है, सो नहीं। मैं मानता हूँ कि सरकारका हेतु शुद्ध है। उसका विश्वास है कि प्रजाकी उन्नति होती जाती है। अपनी "ब्ल्यु बुकों" पर उसकी अटल श्रद्धा है। एक अंग्रेजी कहावत है कि 'अंकोंसे जो चाहे सो सिद्ध हो सकता है'; वह यथार्थ है। इन्हीं आँकड़ोंके बलपर सरकारी अर्थशास्त्री सिद्ध करते हैं कि भारत उन्नति कर रहा है। मेरे जैसे साधारण लोग तो इन आँकड़ोंको देखकर शंका-युक्त हो सिर हिलाते हैं। ऊपरसे देवता आकर कुछ कहें तो भी मैं यही कहूँगा कि "भारतको मैं कंगाल होता देख रहा हूँ।"

हमारी पार्लियामेंट हो तो वह क्या करेगी? जब भारतवर्ष में पार्लियामेंट हो जायेगी तब भूलें करने तथा उन्हें सुधारनेकी सत्ता हमें प्राप्त होगी। पहले तो हमसे भूलें जरूर होंगी; परन्तु चूँकि हम इस देशकी मिट्टीके बने हैं इसलिए उन्हें सुधारनेमें भी देर न लगेगी और इस कंगालीका इलाज भी हमें तुरन्त सूझेगा। तब हम लंकाशायरकी चीजोंपर निर्भर नहीं होंगे। तब हमें अपार धन लगाकर शाही दिल्ली बनानेकी भी आवश्यकता नहीं होगी। शाही दिल्लीका आकार भारतकी झोंपड़ियोंके अनुसार होगा। झोंपड़ियों और पार्लियामेंट हाउसमें कुछ मेल तो रहेगा। प्रजा इस समय निर्धन हो गई है। उसे भूलें करनेका भी हक नहीं रहा। जिसे भूलें करनेका हक न हो वह कभी उन्नति भी नहीं कर सकता। हाउस ऑफ कॉमन्सका इतिहास भूलोंका इतिहास है। एक अरबी कहावत है कि "इन्सान भूलोंका पुतला है।" भूलें करनेका अधिकार और उन्हें सुधारनेकी सत्ता—यह स्वराज्यकी व्याख्या है। यह स्वराज्य पार्लियामेंटमें है और हमें वह आज ही चाहिए। हम उसके योग्य हैं—आज ही। इसलिए हम उसे माँगेंगे तो वह हमें मिलेगा। वह "आज" कब आयेगा यह हमारे ही ऊपर अवलम्बित है।

ब्रिटिश प्रजातन्त्रके—ब्रिटिश प्रजाके आगे रोनेसे स्वराज्य नहीं मिलेगा। ब्रिटिश प्रजा ऐसी माँगको नहीं पहचानती। वह कहेगी—"हम किसीके पास स्वराज्य माँगने नहीं गये। हमने अपनी शक्तिके बलसे उसे प्राप्त किया है। तुम्हें नहीं मिला; क्योंकि तुम अयोग्य हो। जब तुम योग्य होगे तब तुम्हें वह मिलेगा ही।"