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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

इसका परिणाम वैर-भावकी वृद्धि के सिवा और कुछ नहीं होता। पराजित शत्रु हृदयमें वैर रखकर समयकी प्रतीक्षा किया करता है। इस तरह वैरकी विरासत पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती जाती है। हम आशा करते हैं कि भारत कभी दुराग्रहको प्रधान पद नहीं देगा। यदि इस परिषद्के सदस्य समझके साथ सत्याग्रहको स्वीकार कर अपनी कार्य-रेखा बनायेंगे तो निश्चय है कि साध्य वस्तु बड़ी आसानीसे प्राप्त कर लेंगे। यह सम्भव है कि प्रारम्भमें निराशा ही दिखाई दे, भले ही कुछ काल तक उसका परिणाम न दिखाई दे; परन्तु अन्तमें सत्याग्रहकी ही जीत होगी। दुराग्रही कोल्हूके बैलकी तरह चक्राकार घूमता रहता है। उसका यह घूमना गति है, प्रगति नहीं। सत्याग्रही लगातार आगे बढ़ता जाता है।

उतावलीमें मेरे विचारोंकी आलोचना करनेवाला कहेगा कि उनमें कितने ही स्थलोंमें अन्तर्विरोध है। एक ओर तो मैं सरकारसे शस्त्रोंकी तालीमकी माँग करता हूँ, दूसरी ओर सत्याग्रहीको सर्वोपरि पद प्रदान करता हूँ। सत्याग्रहमें शस्त्रका क्या काम? सचमुच कोई काम नहीं है। परन्तु शस्त्र-शिक्षाकी आवश्यकता उनके लिए है जो सत्याग्रही नहीं है। मैं ऐसी कल्पना नहीं करता कि सारा देश सत्याग्रही बन जायेगा। लेकिन कायर बनकर देशकी सेवा अथवा निर्बलोंकी रक्षा तक न करना सदा सर्वथा त्याज्य है। अत्याचारी मनुष्यसे निरपराधिनी स्त्रीकी रक्षा करनेके लिए या तो हमें अपना बलिदान देकर उसे आत्मबलसे—प्रेमबलसे—वशीभूत करना चाहिए और यदि ऐसी शक्ति न हो तो शरीरबलसे उसको अत्याचार करनेसे रोकना चाहिए। सत्याग्रही और शस्त्रधारी दोनों योद्धा हैं। शस्त्रधारी निःशस्त्र होकर दीन बन जाता है। परन्तु सत्याग्रही कभी दीन बनता ही नहीं। वह नश्वर शरीर या शरीरके शस्त्रोंपर भरोसा नहीं रखता, वह तो अजेय, अमर, अविनाशी आत्माके बलपर युद्ध करता है। जो न शस्त्रधारी है, न सत्याग्रही वह आदमी ही नहीं है। उसे आत्माका कुछ भी भान नहीं; अन्यथा वह डरसे कभी भाग नहीं सकता। वह शरीरको कृपणके धनके समान संचय करने में सर्वस्व खो बैठता है। उसे मरना नहीं आता। शस्त्रधारी तो प्राण हथेलीपर लिये फिरते हैं; किसी दिन उनके सत्याग्रही होनेकी सम्भावना है। भारतसे हम यह आशा रखते हैं कि यह महान् पवित्र आर्यदेश अपनी आर्यताको—दैवी वृत्तिको—प्रधान पद प्रदान कर अधिकांशमें सत्याग्रहका उपयोग करेगा और शस्त्रक्रियाको सर्वोपरि आसन न देगा। भारतवर्षमें 'शरीरबल सत्य है'—वाले सूत्रका मान न होगा। परन्तु "सत्यमेव जयते"—वाले सूत्रका निस्संशय आदर होगा।

सूक्ष्म-दृष्टिसे विचार करनेपर मालूम होगा कि सत्याग्रहसे हम समाजका सुधार कर सकते हैं। अपनी जाति-प्रथाकी त्रुटियाँ दूर कर सकते हैं, हिन्दू-मुसलमानोंके बीचका झगड़ा दूर कर सकते हैं और अपने राजनीतिक प्रश्नोंको भी हल कर सकते हैं। कार्यकी सरलताके लिए हम इन सब विषयोंको अलग-अलग मानते हैं और यह ठीक भी है, किन्तु हमें भूलना न चाहिए कि उनमें आपसमें प्रगाढ़ सम्बन्ध है। राजनीतिक विषयोंका और धर्म अथवा समाज-सुधारका कोई सम्बन्ध ही नहीं है, यह खयाल ठीक नहीं है। धार्मिक वृत्तिसे हम राजनीतिक सवालोंको जिस तरह हल कर सकते हैं उस तरह धर्मवृत्तिको छोड़कर नहीं कर सकते; धर्मवृत्तिको छोड़कर हम जो फल प्राप्त करेंगे