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भाषण : प्रथम गुजरात राजनीतिक परिषदमें

वह और ढंगका होगा। राजनीतिक विषयोंका विचार करते हुए हम भटकते-रमते छप्पन हजार [लाख] अज्ञात साधुओंको छोड़ नहीं सकते। ऐसे ही मुसलमान भाई फकीरोंको नहीं भुला सकते। हिन्दू समाज विधवाओंके अथवा बाल-विवाहके सवालकी अवगणना नहीं कर सकता। इसी तरह मुसलमान समाज पर्देके प्रश्नको नहीं छोड़ सकता। हिन्दू और मुसलमान, दोनों एक दूसरेके सम्बन्धमें प्रश्न उठाते रहते हैं; इन प्रश्नोंसे भी हम आँखें नहीं मूँद सकते।

सचमुच हमारी कठिनाइयाँ हिमालयके समान हैं। परन्तु जैसी हमारी कठिनाइयाँ हैं वैसे ही बढ़िया साधन भी, उन्हें दूर करने के लिए, हमारे पास हैं। हम प्राचीन जातिकी सन्तान हैं। रोम, यूनान, मिस्र इत्यादि देशोंकी सभ्यताके क्षयके हम साक्षी हैं। हमारी सभ्यतामें समुद्रके पानीकी तरह ज्वार-भाटा आता रहा है। परन्तु वह समुद्र की तरह अचल रही है। हमारे देशमें पूर्ण स्वतन्त्र रहने के लिए आवश्यक समस्त सामग्री उपलब्ध है। यहाँ महान् पर्वत हैं, नदियाँ हैं, सृष्टि-सौन्दर्य है। इसकी सन्तान हमारे लिए पराक्रम की विरासत दे गई है। यह देश तपश्चर्याका भण्डार है। यहाँ सब धर्म साथ रहते हैं। सब देवी-देवताओंकी पूजा होती है। यह सारी साधन-सम्पत्ति होते हुए भी यदि हम कोई अलौकिक कार्य करके संसारको शान्ति प्राप्त न करा सके, अपनी सात्विक प्रवृत्तिसे यदि हम अंग्रेज प्रजाको न जीत सके, तो हम अपनी इस विरासतको लजायेंगे। अंग्रेज जातिके साथ हमारा सम्बन्ध निरर्थक गया माना जायेगा। अंग्रेज जाति साहसी है। उसमें धर्मकी वृत्ति भी है। उसमें अटल आत्म-विश्वास है। वह वीर है; वह स्वतन्त्रताकी आराधना करती है। किन्तु उसमें व्यापार-वृत्तिका स्थान प्रधान है। धनोपार्जन करनेमें उसने योग्य और अयोग्य साधनोंका विचार नहीं किया है; वह आधुनिक सभ्यताकी पूजा करती है। उसके मनपर से प्राचीन आदर्शोंका प्रभाव बहुत कम हो गया है। यदि हम उस जातिकी नकल करनेके बदले अपनी प्राचीन विरासतका खयाल रखें, अपनी सभ्यताके प्रति सच्चा भाव रखें, उसको श्रेष्ठतापर हमें दृढ़ विश्वास हो, तो हम उस जातिके साथ अपने सम्बन्धका सदुपयोग करेंगे और अपनेको उससे तथा सारे संसारको लाभ पहुँचायेंगे। जगन्नियन्ता परमात्मासे मेरी प्रार्थना है कि यह परिषद् इस महान् कार्यमें अपना पूरा हिस्सा अदा करे और गुजरात और भारतवर्षकी कीर्तिको उज्ज्वल करे।

[गुजरातीसे]
महात्मा गांधीनी विचारसृष्टि