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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

मातृभाषामें[१] ही बोलेंगे। वे वृद्ध हो गये हैं, लेकिन यदि वे गुजराती शिक्षक रखकर गुजराती सीखें तो यह उचित ही होगा। हम तो बम्बई प्रदेशके रहनेवाले हैं, इसलिए जनताकी भावनाओंको जाननेके लिए [हमें] दोनों भाषाओंका अभ्यास करना चाहिए। महारानी विक्टोरियाने उर्दू सीखी थी।

[गुजरातीसे]
गुजराती, ११-११-१९१७

१७. भाषण : प्रथम गुजरात राजनीतिक परिषद् में-३[२]

नवम्बर ५, १९१७

कुछ-एक सुन्दर भाषण पूरे नहीं करने दिये गये, उसके लिए मुझे अफसोस है; मैं उन सज्जनोंसे क्षमा माँगता हूँ। जिनकी उमंगें मनमें रह गई हों, वे किसी अन्य रीतिसे उन्हें प्रकट कर सकते हैं। मुझे गोधराके निवासियों के प्रेमको त्यागकर आज ही जाना पड़ेगा। अधिक रहा होता तो शान्ति मिलती, लेकिन फिलहाल जहाँ दावाग्नि सुलग रही है वहाँ शान्ति कहाँ? जो गीत गाया गया वह कानोंको मधुर लगा, लेकिन इतनेसे ही बात खत्म नहीं हो जाती। मुझे उम्मीद है कि उन वचनोंको आप व्यावहारिक जीवनमें उतारेंगे। गीत गाने के बाद यदि आप देश कल्याणके निमित्त अपने प्राण उत्सर्ग करेंगे तो श्री तलाटीने[३] जो आशा प्रकट की है वह अवश्य पूर्ण होगी। यदि आप बारह मासके भीतर स्वराज्य प्राप्त करनेकी प्रतिज्ञा लेनेका साहस करें तो वह प्रतिज्ञा ली जाये। हमने परिषद् में देखा कि मातृभाषामें कितनी शक्ति है। हमारी भाषा विधवाके समान है। श्री खापर्डे[४] आदिने मातृभाषाकी खूबियाँ बताई हैं। श्री तिलकने कल जो भाषण दिया उसे लगभग ७५ प्रतिशत लोगोंने समझा। विदेशी भाषा सुवर्णमय होनेपर भी उपयोगी नहीं हो सकती। हमारी भाषा तृणवत् हो, तो उसे स्वर्णमय बनाना चाहिए।

पास किये गये प्रस्तावोंमें पाँच प्रस्ताव ऐसे मामलोंसे सम्बन्धित हैं जिन्हें हम एक वर्षके भीतर पूरा कर सकते हैं। बेगारसे सम्बन्धित प्रस्तावको कार्यकारिणी समिति यदि एक वर्षमें पूरा नहीं करती तो सदस्योंको त्यागपत्र दे देना चाहिए। यदि वे विद्यार्थियोंकी स्थितिमें सुधार करने में सफल न हों तो उन्हें चूड़ियाँ पहन लेनी चाहिए।

 
  1. मराठी।
  2. यह गांधीजीका समापन भाषण था। ७-११-१९१७ के बॉम्बे क्रॉनिकल में कहा गया था कि "परिषद्को विसर्जित करते हुए श्री गांधीने एक छोटेसे भाषणमें उनसे अनुरोध किया कि वे अपने प्रचारके कार्यको जारी रखें और श्री मॉण्टेग्युको भेजे जानेवाले आवेदनपत्रपर लोगोंसे हस्ताक्षर लें।"
  3. उन्होंने यह आशा प्रकट की थी कि स्वराज्य प्राप्तिके बाद प्रथम सम्मेलन गुजरात में स्थित नडियादमें हो।
  4. जी॰ एस॰ बाबासाहब खापर्डे, बरारके प्रसिद्ध वकील और बाल गंगाधर तिलकके प्रबल समर्थक।