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८१. पत्र : मगनलाल गांधीको

मारवाड़ जंक्शन
मंगलवार [१९१८]


चि० मगनलाल,

करघोंवाले कमरेसे चीजें चुरानेके लिए कुछ चोरोंके आनेकी खबर मैंने सुनी । बरामदे में किसीको सुलानेकी आवश्यकता है । मैंने कल रातको लल्लूभाईको भेजा था । उनको और अन्य लोगोंको भी भेजा जाये तो ठीक हो । निश्चिन्त रहकर, श्रद्धा रखते हुए हिम्मतसे काम करना ।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७१४) से । सौजन्य : राधाबेन चौधरी

८२. पत्र : एस्थर फैरिंगको

बम्बई
१९१८


प्रिय एस्थर,[१]
दुबारा बीमार पड़नेके बाद, पहली बार लिखनेका प्रयास कर रहा हूँ ।
हालांकि मैं निश्चयके साथ यह तो नहीं बतला सकता कि तुम्हारा कर्त्तव्य क्या होना चाहिये, लेकिन मेरा खयाल है कि श्रीएण्ड्रयूजकी अपीलके[२]मुताबिक चलना तुम्हारे लिए ठीक ही होगा। मुझे स्वयं तुम्हारे वहाँ जानेकी उपयोगिता समझमें नहीं आई । तुम्हारे इसके बादके पत्रोंसे इस सम्बन्धमें कुछ प्रकाश पड़ेगा। मुझे सचमुच बहुत, बहुत ही ज्यादा अफसोस है कि इन छुट्टियोंके दौरान तुम आश्रममें नहीं हो। लेकिन आश्रमसे तुम्हारा यह विवशताजन्य वियोग तुम्हें आश्रमके और पास ले आता है ।

तुमको जानकर प्रसन्नता होगी कि मैं तुम्हारी बनाई हुई बनियान रोज पहिनता हूँ । वह सदा ही तुम्हारी सेवाकी याद दिलाती रहती है ।

  1. दक्षिण भारत में ' डेनिश मिशनरी सोसाइटी' की एक कर्मचारी। वे अपने शिक्षण सम्बन्धो कार्यकी तैयारीके लिए साबरमती आश्रम गई थीं।
  2. शान्तिनिकेतनमें काम करनेके लिए