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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नतिके साधनके रूपमें किया जाये। मानव-कुलका बहुत बड़ा भाग अपने शरीरका यह उपयोग नहीं करता। परिणामस्वरूप शरीर अथवा जड़ तत्त्वकी आत्मा अथवा चेतन तत्त्वपर विजय होती दिखाई देती है। लेकिन हम, जो यह जानते हैं कि यह शरीर सदा परिवर्तनशील है और नश्वर है और उसमें रहनेवाली आत्मा ही अविनाशी है, उन्हें तो दृढ़ संकल्प करके अपने शरीरपर इतना काबू पा लेना चाहिए कि आत्माकी सेवाके लिए वे उसका पूरा उपयोग कर सकें। 'बाइबिल' के नये करार [न्यू टेस्टामेंट ] में यह विचार काफी स्पष्ट कर दिया गया है। परन्तु हिन्दू शास्त्रोंमें वह जितनी परिपूर्णताके साथ और विशद रूपमें समझाया गया है, उतना मैंने और कहीं नहीं देखा। 'रामायण' और 'महाभारत' के पन्ने पन्नेपर तुम आत्मसंयमका यह नियम लिखा पाओगी। क्या ये दो ग्रन्थ तुमने पढ़े हैं ? न पढ़े हों, तो जितनी जल्दी हो सके, ध्यानपूर्वक और श्रद्धासे पढ़ लेने चाहिए। इन दोनों ग्रन्थोंमें परियोंकी कहानियों जैसी बहुत-सी चीजें भी आती हैं। परन्तु ये ग्रन्थ साधारण जनताके लिए लिखे गये हैं, इसलिए इनके रचयिताओंने जानबूझकर ऐसी शैलीमें लिखना पसन्द किया कि आम जनताके लिए वे रोचक बन जायें। करोड़ों लोगोंको सत्य समझानेका उन्होंने सरलसे-सरल ढंग अपनाया है, और हजारों वर्षका अनुभव सिद्ध करता है कि उन्हें इसमें अद्भुत सफलता मिली है। मेरी बात अच्छी तरह समझमें न आये अथवा शंका हो, तो मुझे लिखो, मैं दुबारा समझानेकी कोशिश करूँगा।

मैंने एक चीरा लगवाया है। आज छठा दिन है। आपरेशन सफल हुआ या नहीं, यह तो मैं नहीं जानता। परन्तु डॉक्टर बहुत मशहूर है।[१]वह बहुत सावधान आदमी है, इसमें कोई सन्देह नहीं है। आपरेशन करा लेनेपर भी मेरी तकलीफ जारी रहे, तो उसमें डॉक्टरका कोई दोष नहीं होगा।

सस्नेह,


सदैव तुम्हारा,
बापू

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य : नारायण देसाई
  1. डॉ० दलाल