पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

९१. पत्र : नरहरि परीखको

[ बम्बई ]
जनवरी २७, १९१९


आपका पत्र मैंने सुना ।[१]आपने खुले दिलसे लिखा है, यह मुझे बहुत अच्छा लगा । अभी और भी अधिक लिखें, इस आशासे में यह जवाब दे रहा हूँ । मेरे व्रतका विशाल अर्थ तो वही हो सकता है, जो आपने किया है। इसलिए जिस दिन मैंने बकरीका दूध लेनेका निश्चय किया, उसी दिन मैंने उसकी टीका करते हुए कहा था कि अब इसमें से रस तो निकल जायेगा । अब मैं दूध-रहित खुराकके प्रयोग नहीं कर सकता । अब मैं यह घमण्ड नहीं रख सकता कि मैं प्राणिज खुराक नहीं लेता । इतनेपर भी आपका पत्र सुनने के बावजूद मेरा खयाल है कि इससे व्रत नहीं टूटता । मेरा खयाल है कि मेरे व्रतका संकुचित अर्थ तो वही है, जो मैंने किया है । व्रत लेते समय बकरीके दूधका प्रश्न ही मेरे सामने नहीं था । और मैं यहाँतक कहना चाहता हूँ कि मेरे दोनों व्रतोंके भीतर बड़ी खिड़कियाँ रह गईं, यह मेरे व्रतोंकी अत्यन्त पवित्रता सूचित करता है । पाँच वस्तुओंके व्रतमें हिन्दुस्तान से बाहरके मुल्क मुझे छूट देनेवाले रह गये और दूधके व्रतमें बकरी मेरे लिए सहज ही माताके समान हो गई। संकुचित अर्थ करके भी व्रत पालनके हमारे शास्त्रोंमें अनेक उदाहरण हैं । उन सबका रहस्य अब मैं ज्यादा समझ सकता हूँ। मेरे जैसे आदमीने व्रत भंग किया यह कहनेके बजाय यह कहना ज्यादा अच्छा है कि व्रतके शब्दार्थका तो अन्त तक पालन किया। मैं मानता हूँ कि बकरीके दूधसे मेरा गुजारा हो जायेगा। परन्तु यह कहनेवाले तो निकल ही आते हैं और अब भी निकल आयेंगे कि गायका दूध लिए बिना पूरी ताकत नहीं आ सकती। उस समय मैं गायका दूध तो हरगिज नहीं लूंगा । और फिर यह भी नहीं है कि सभी जगह बकरीका दूध मिल ही जायेगा । इसलिए व्रतके शब्दार्थका पालन करने में भी कुछ-न-कुछ असुविधा तो रहेगी ही। लेकिन इस समय मैं आपके सामने सुविधा- असुविधाका प्रश्न नहीं रखता मैं अपने व्रतका जो संकुचित अर्थ करता हूँ, वह संभव है या नहीं, हमें इसी बातपर विचार करना है । अगर यह अर्थ सम्भव हो, तो यह अर्थ करके मित्रोंके दुःखको मिटाना और शरीरको बचा लेना मेरा आपद्-धर्म है । मुझे तो ऐसा ही महसूस होता है कि जबतक [ किसी व्यक्तिको ] अपना व्रत भूलभरा प्रतीत न हो या पापयुक्त न लगे, तबतक किसीकी भी खातिर [ उसे ] उस व्रतको छोड़ने का अधिकार प्राप्त नहीं होता। अगर एक बार भी व्रत तोड़नेकी छूट दे दी जाये, तो व्रत पाले ही नहीं जा सकते और उनकी महिमा जाती रहेगी। परन्तु व्रतके जो भी अर्थ हो सकते हों, वे अर्थ करके उनसे लाभ उठाने में मुझे कोई हानि दिखाई नहीं देती ।

  1. इसे महादेव देसाईने अपनी डायरीमें इस तरह उद्धृत किया है: “इस छूटछाट में सम्पूर्ण उदारता [ बरती गई ] है लेकिन इससे तो मात्र व्रतके शब्दार्थका पालन किया ही कहा जायेगा।दूधको यदि मांसकी भाँति मानें तो गायके दूधके समान ही बकरीका दूध माना जायेगा।"

१५-६