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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एकादशीके दिन मामूली नमक न लेकर सेंधा नमक लेकर मनको समझाया जाता है कि एकादशीका पालन किया है। यह धोखाबाजी नहीं है । साधारण नमक तो नहीं ही लिया जा सकता, परन्तु नमक का स्वाद भी नहीं छोड़ा जा सकता, इसलिए उसके एवज में दूसरा नमक लेकर भी एकादशीका व्रत रखनेवाला कुछ-न-कुछ संयमका पालन तो करता ही है। वह किसी दिन सेंधा नमक भी छोड़ सकता है ।

मैं अपना उत्तर लम्बा नहीं कर रहा हूँ । जो कुछ लिखा है, उसपर विचार करना और फुरसत मिलनेपर लिखने लायक बात हो, तो लिखना ।

इस पत्र-व्यवहारसे हम सभी कुछ-न-कुछ सीखेंगे और मुझसे भूल हो रही होगी, तो मुझे उसका भान हो जायेगा ।

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५

९२. पत्र : रेवाशंकर सोढाको[१]

जनवरी २७, १९१९

तुम्हारा पत्र मिला । तुम्हारी विद्या-सम्पादन करनेकी अभिलाषा मुझे पसन्द आई है। मैं उसका आदर भी करना चाहता हूँ । परन्तु इस समय मुझे उसे रोकना पड़ेगा। कभी-कभी विद्याका राग त्यागने योग्य होता है । मुझे खुदको संस्कृतकी बड़ी कमी महसूस होती है। मराठी, बँगला और तमिल सीखनेके अपने शौकका मैं बयान नहीं कर सकता । फिर भी मेरे हाथमें आये हुए एकके बाद एक कामके कारण मुझे अपना लोभ संवरण करना पड़ा। कई बार ऐसी इच्छा होती है कि चि० देवदासको बहुत ज्ञान दूँ । ज्ञान प्राप्त करनेकी उसकी शक्ति बहुत अच्छी है। मेरा यह विश्वास है कि वह ऐसा [ व्यक्ति ] है, जो उसका सदुपयोग करेगा । इतना होनेपर भी मद्रासी भाइयोंको हिन्दी सिखानेका उसका काम ज्यादा जरूरी है। इसलिए मैंने उसकी पढ़ाई रोक दी है। स्वयं चि० मगनलालका उदाहरण लो । उसकी पढ़ाईमें जो त्रुटि रह गई है उसका तो कोई पार ही नहीं। यह तो हम सब स्वीकार करेंगे कि यदि वह अपनी पढ़ाईको आगे बढ़ा सके, तो उसका वह बहुत अच्छा उपयोग कर सकता है । उसकी पढ़ाई पूरी नहीं हो सकी, यह खामी मुझे बारम्बार खटकती है। फिर भी जबसे वह मेरे पास आया है, तबसे मुझे उसे दूसरे कामोंमें लगाना पड़ा है, इसलिए मैं उसे अधिक पढ़ा नहीं सका । ऐसे तो में और बहुतसे उदाहरण दे सकता हूँ । परन्तु मैंने जो दिये हैं, वे तुम्हें सन्तोष देनेके लिए काफी हैं। फिलहाल तो हमें आश्रमसे ऐसे-ऐसे काम लेने हैं कि उनमें जितने आदमियोंको लगाया जा सके, उतने आदमियोंको लगा देने की जरूरत है। इसलिए मुझे लगता है कि अभी तो तुम्हें

  1. रतनसी मूलजी सोढाके पुत्र, एक उम्र सत्याग्रही जिन्होंने दक्षिण आफ्रिकामें संघर्ष के दौरान कैद भोगी थी ।