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पत्र : मगनलाल गांधीको

तबतक वे इस आन्दोलनमें जरा भी शरीक न हों । मैं आशा रखता हूँ कि मुझसे सलाह किये बिना वे कोई कदम नहीं उठायेंगे ।

हृदयसे आपका,

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

९६. पत्र : मगनलाल गांधीको

बम्बई

[ जनवरी १९१९ के अन्तिम सप्ताह में ]
चि० मगनलाल,

तुम्हारे सब पत्रोंको मैं हमेशा सुनता हूँ। मेरी तबीयतमें उतार-चढ़ाव होता रहता है । यहाँ बहुत ज्यादा सुविधाएँ हैं, इसीलिए मैं यहाँसे नहीं निकलता। मेरी चिन्ता न करना । जिस समय खेतीका काम, मजदूरों अथवा आश्रमवासियों द्वारा अच्छी तरहसे होने लगेगा और बुनाईका काम उन्नतिपर होगा, आश्रमकी सारी त्रुटियाँ दूर हो जायेंगी । यदि गुलबदन और कमला अच्छा काम न करती हों, तो उनके साथ बातचीत करने तथा उन्हें साफ-साफ कह देनेकी जरूरत है। यदि हमें आटेकी तंगी होती हो तो गेहूँ साफ करवाकर मशीनपर पिसनेके लिए भेजना चाहिए। अब ऐसी स्थिति है कि हम कपड़े के सम्बन्धमें स्वदेशी व्रतका पालन कर सकते हैं । गेहूँ साफ करनेके लिए मजदूरी देनी पड़े तो देना ।

रुखी प्रायः बीमार रहती है, यह आश्चर्यकी बात है । तुम्हें इसके कारणकी खोज करके उसके स्वास्थ्यको ठीक बनाना चाहिए। पार्वतीको खूब पानी पीने और गहरे श्वास लेनेकी आवश्यकता है । प्रभुदासका स्वास्थ्य कैसा रहता है ? व्यायाम-शिक्षक क्या करता है ? निर्माण कार्य फिरसे शुरू किया है ? पाठशाला कैसी चलती है ? आश्रममें कौन-कौन आते हैं ? मामा क्या काम करते हैं ? छोटालाल क्या करते हैं ?

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७६९) से ।
सौजन्य : राधाबेन चौधरी