पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/११६

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९७. शंकरलाल बैंकरको लिखे पत्रका सारांश

[ फरवरी २, १९१९ के पूर्व ]

होमरूल लीगकी बम्बई शाखाओंके संयुक्त तत्त्वावधानमें २ फरवरी, १९१९ को शान्तारामकी चाल, बम्बईमें फौजदारी कानून संशोधन विधेयक [ क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट बिल ] तथा फौजदारी कानून संकटकालीन अधिकार विधेयक [ क्रिमिनल लॉ एमजेंसी पावर्स बिल] पेश किये जानेके विरोधमें एक सार्वजनिक सभा हुई। पं० मदनमोहन मालवीयने अध्यक्षता की। श्री जमनादास द्वारकादासने होमरूल लीगके मन्त्री श्री शंकरलाल बैंकरको लिखे गांधीजीके निम्नलिखित पत्रको सभामें पढ़कर सुनाया ।

मेरे मतमें रौलट समितिकी[१]रिपोर्टमें ऐसी कोई बात नहीं है जिससे प्रस्तावित विधेयकों की आवश्यकता प्रतीत होती हो। इसलिए हम सबका कर्त्तव्य है कि इन विधेकोंका धैर्य और दृढ़ संकल्पके साथ विरोध करनेके लिए जनमत तैयार करें। यदि रौलट विधेयक कानूनके रूपमें पास हो जाते हैं, तो सुधार, चाहे जितने मूल्यवान क्यों न हों, बिलकुल व्यर्थ हो जायेंगे। एक तरफ जनताके अधिकारोंको बढ़ाना और दूसरी ओर उसके अधिकारोंपर असहनीय प्रतिबन्ध लगाना नितान्त हास्यास्पद है। यदि में बीमार न होता तो विधेयकोंके खिलाफ आन्दोलनमें निश्चित रूपसे अपना भाग अदा करता ।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ४-२-१९१९

९८. पत्र : देवदास गांधीको

[ बम्बई ]
फरवरी २, १९१९


चि० देवदास,

तुम्हारे पत्रकी आज आशा रखी थी, परन्तु नहीं आया । तुमसे जुदा होनेपर मुझे कम दुःख नहीं हुआ । परन्तु जुदा होनेमें मैंने तुम्हारा हित और तुम्हारा कर्त्तव्य देखा । इसलिए मोहसे उत्पन्न होनेवाले दुःखका मैंने त्याग किया और तुमसे जानेका ही आग्रह

  1. भारत सरकारने भारतमें राजद्रोहात्मक आन्दोलनों के बारेमें जाँच करके रिपोर्ट प्रस्तुत करनेके लिये १९१७ में एक समिति नियुक्त की थी । इंग्लैंडके न्यायाधिकरण सर्वोच्च न्यायालयके न्यायाधीश रौलट इसके अध्यक्ष थे। मॉण्ट फोर्ड सुधारोंके प्रकाशित होनेके तुरन्त बाद १९१८ में इस समिति की सिफारिशें प्रकाशित की गई जिसमें एक सिफारिश यह थी कि भारत प्रतिरक्षा अधिनियम [ डिफेंस ऑफ इंडिया ऐक्ट ] की प्रभाव अवधि समाप्त हो जानेपर विशेष कानून बनाये जाने चाहिए ।