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पत्र : मगनलाल गांधीको

किया । मद्रास में तुम्हारा काम पूरा हो जानेपर तुम्हारे पढ़ाईके शौकको मैं पूरा करूँगा । परन्तु इतना तुम अवश्य मानना कि तुम जो अनुभव प्राप्त कर सके हो, वह थोड़े लोगोंको ही मिला होगा । हमारा सारा जीवन विद्यार्थीका होना चाहिए। अगर तुम अपना जीवन इस सूत्र के आधारपर गढ़ोगे तो तुम पढ़ाईके लिए बहुत बड़े हो गये नहीं माने जाओगे।[१]...पत्र नियमित रूपसे लिखना और संध्या [ प्रार्थना ] नियमपूर्वक करना ।

[ बापूके आशीर्वाद ]

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५

९९. पत्र : मगनलाल गांधीको

बम्बई
वसन्त पंचमी [ फरवरी ५, १९१९]


चि० मगनलाल,

भाई महादेव कल रात रवाना हो गये । उनकी अनुपस्थितिमें मैं लिखनेका काम चि० मथुरादाससे[२] लेता हूँ। ऐसी उम्मीद है कि मैं सोमवार सवेरे वहाँ पहुँच जाऊँगा । सात सेर [पौंड ] दूधका प्रयोग जरा कठिन साबित हुआ । उसे दवाकी तरह पी गया । शरीरको कोई नुकसान नहीं पहुँचा । इसलिए आज लगभग छ: सेर पीऊँगा । बम्बई आनेके बाद आज पहली बार एक-साथ सवा घंटे सैर की। मालाबार हिलपर गया था । कुछ परेशानी नहीं हुई। भाई मावजीसे मुझे आश्रमके सम्बन्धमें कुछ बातोंका पता चला है । लेकिन शीघ्र ही मैं सब-कुछ अपनी आँखोंसे देख लूंगा, इसलिए अधिक नहीं पूछता और इसी कारण कुछ अधिक लिखता भी नहीं हूँ । भाई महादेव भी बुधवारको पहुँचेंगे । दुर्गाबेनको[३] साथ लायेंगे । उन्होंने मुझे पूर्णतः पराधीन बना छोड़ा है। वे ही मेरे हाथ-पाँव और मस्तिष्क बने हुए हैं इसलिए [ उनके अभावमें ] मैं अपनेको लूला, लँगड़ा और गूंगा महसूस करता हूँ। मैं जैसे-जैसे महादेवके सम्पर्क में आता जाता हूँ वैसे-वैसे उनके गुणोंका विशेष अनुभव करता हूँ। वे जितने गुण-सम्पन्न हैं उतने ही विद्वान् भी हैं। इसलिए मेरे संतोषकी सीमा नहीं है ।

मोहनदास करमचन्द गांधीके आशीर्वाद[४]

हस्तलिखित मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७२३) से ।
सौजन्य : राधाबेन चौधरी
  1. डायरीमें यहाँ कुछ शब्द छोड़ दिये गये हैं ।
  2. गांधीजीके भानजे ।
  3. महादेव देसाईकी पत्नी ।
  4. पत्रपर हस्ताक्षर भी मथुरादास त्रिकमजीने किये थे ।