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१००. पत्र : स्वामी सत्यदेवको

मुंबई
गुरुवार माघ शुद्धि ६ [ फरवरी ६, १९१९]


स्वामिजी',[१]

आपका पत्र मिला । आप सच कहेते हो देविदासकी साथ भेजा हुआ पेगामसे आप सन्तुष्ट न हो शकते । पत्र नहि लिखनेका सबब शीर्फ मेरा आलस्य ही है । मुझे क्षमा कीजियेगा । देविदासको मैंने कहा था कि आप सन्तुष्ट न होंगे तो में अवश्य लेखित उत्तर भेज दऊंगा। हिंदी शिक्षाके लिये मद्रास प्रांतमें आप सब योग्य प्रबंध कर शकते हो । सारा इलाकामें गुम सकते हो। जग जग हिंदी पाठशाला निश्चित कर शकते हो । पाठशालाओंके लिये आपने चूने हूये शिक्षको आप निर्मित कर शकते हो । आप पढ़ानेका कार्य न करे परंतु सब पाठशालाओका निरीक्षण योग्य समय पर करते रहे । जब सारे इलाके में आपको संतोष मिले ऐसी पाठशाला खूल जाये और आपके सिवाय इन पाठशाला चल शके ऐसा आप निश्चिततासे कह सके उस बखत आप मद्रास इलाका छोड़ शकते हो । इस प्रवृत्ति में आप दश हजार रुपैया तक खर्च कर शकते हो । आपको पैसा भेजनेकी जवाबदारी मेरे शीर पर है। आपको प्रयागजीकी साहित्य कमिटीसे[२]कुच्छबी संबंध नहि रहेगा । परन्तु में सब पैसा प्रयागजीसे मांगना चाहता हूं । उसमे कुछ आपत्ति आजायेगी तो मे दूसरा प्रबंध कर लौंगा । अब मुझे लगता है आपका सब प्रश्नका उत्तर मैने दे गया। यदि कुच्छ त्रुटि हो तो आप कहेंगे । सुरेन्द्रके लिये मैं कल देविदासकु लंबा पत्र लिखा है। इस समय सुरेन्द्र मानसिक व्याधिसे ग्रस्त है । उसको इंग्रेजी पाठशालाका प्रबंध पर मोह उत्पन्न हुआ है । इस मोहमें उसकु छोड़ाना आवश्यक मालुम पड़ता है । आप उसको शांति दे सकेंगे। यदि आप उसका विचारको पसंद करते होंगे तो आप मुझे समझाएंगे।

हस्तलिखित दफ्तरी प्रति (एस० एन० ६४३८) की फोटो-नकलसे ।

  1. स्वामी सत्यदेव परिव्राजक
  2. हिन्दी साहित्य सम्मेलनकी।