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१०१. पत्र : मदनमोहन मालवीयको

मुंबई
शनिवार माघ शुद्ध ८ [ फरवरी ८ १९१९]


भाई साहेब,

आज रोव्लेट बीलकी बारेमें सब व्याख्यान पढ़ लिया। मुझे बहुत रंज पेदा हुआ। वाईसरोयका व्याख्यान निराशाजनक है। ऐसी हालतमे तो इह उमेद रखता हूं के सब हिंदी मेम्बर सिलेक्ट कमेटीमें से निकल जायगे और यदि जरु हो तो कौन्सिलमें से बी निकल जाये और देश में आंदोलन करे । आपने और दूसरे मेम्बरोने कहा है यदि रोब्लेट बील पसार होंगे तो हिंदुस्थानमें कोई रोज नहि हुआ है ऐसा भारे आन्दोलन हो जायेगा । जे आंदोलन चल रहा है इसकी भीति सरकारको नही है ऐसा लाउंस[१]साहेबने सुनाया है और उनकी बात बी सची है। हिंदुस्थानमें एक लाख सभा कर सके तो भी क्या हुआ । मेने निश्चय नहि किया है परंतु मुझको ऐसा लगता है सरकार जब जेरी कायदा दाखल कर देगी तब उनके दूसरे कायदेका निरादर करनेका प्रजाको अधिकार प्राप्त होता है। परि हम इस समय प्रजाका जोर नहि बतायेंगे तो जो कुछ रिफोर्म मिलनेके है व निकंबे होंगे। मेरा राइ यह है के आप सब सरकार कु जाहेर कर दो के उने टेकस जब तक रोव्लाट बील कायम रहेंगे तब तक नहि भरेंगे और सजाको नहि देनेकी सलाह देंगे। मैं जानता हूं ऐसी सलाह देना बडी जिमेदारीका काम है । परन्तु हम कुछ बड़ा काम नहि करेंगे जब तक उन लोगोंको हमारे लिये कुछ भी मान पेदा नहि होगा। जीसके पास हमारा मान नहि है उसके पास से कुछ भी मिलनेकी हम आशा कर करते । सिविल सर्विस और अंग्रेजोका व्यापारके लिये वाइसरोयने जो कुछ कहा है व भी मुझको तो ठीक नहि लगता है । सिविल सर्विसकी सत्ता बहुत ही कमती करनी चाहे और इंग्रेज लोक उने व्यापरको सुरक्षित कर रहे हैं ऐसी रक्षा स्वराज्यकी पीछे उन्को हरगीज नहि मिलेगी । आज तो वे लोक हमसे बहुत ही अधिक हक रखते हैं। मैं कल आश्रम पर जाता हूं । प्रत्युत्तर वहीं भेजनेकी कृपा किजियेगा ।

हस्तलिखित दफ्तरी प्रति (एस० एन० ६४३९) की फोटो नकलसे ।

  1. सर जॉर्ज लाउण्डेज, भारत सरकारके कानून -सदस्य [ लॉ-मेम्बर ]