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१०२. पत्र : वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

बम्बई
फरवरी ९, १९१९

प्रिय श्री शास्त्रियर,

मैंने रौलट विधेयकोंपर आपका जोरदार भाषण अभी-अभी पढ़ा । लेकिन यह भी जितना चाहिए उतना सख्त तो नहीं ही है। इन विधेयकों और वाइसराय, सर विलियम विन्सेंट तथा सर जॉर्ज लाउण्डेज़के[१]भाषणोंने मेरे अन्तर तकको झकझोर दिया है; और यद्यपि अभी मेरा बिस्तर नहीं छूटा है, फिर भी मुझे लगता है कि अब बिस्तरपर लेटे लेटे इन विधेयकोंकी प्रगति देखते रहना मेरे लिए असम्भव है। मेरे लिए ये विधेयक किसी मूलबद्ध रोगके उभड़ उठनेके निशान हैं। ये विधेयक प्रशासनिक सेवा [ सिविल सर्विस ] के हमारी गर्दनोंपर सवार रहनेके दृढ़ निश्चयके द्योतक हैं। वे अपने अधिकारोंमें से रत्तीभर भी छोड़नेकी इच्छा नहीं करते । यदि हमारे ऊपर प्रशासनिक सेवाका लौह-शासन ज्योंका त्यों कायम रहा और यदि व्यापारके क्षेत्रमें ब्रिटेनको वर्तमान अमंगलकारी विशेष सुविधाएँ प्राप्त रहीं तो मुझे लगता है कि किसी सुधारका कोई अर्थ नहीं होगा । मैं इन विधेयकोंको एक खुली चुनौती मानता हूँ । यदि हम झुक गये तो नष्ट हो जायेंगे । यदि हमने अपने इन शब्दोंको सच कर दिखाया कि अबकी बार सरकारको ऐसे आन्दोलनका मुकाबला करना पड़ेगा जैसा उसने पहले कभी देखा नहीं था, तो हम सिद्ध कर दिखायेंगे कि हममें निरंकुश या अत्याचारी शासनका प्रतिरोध करनेकी सामर्थ्य है । जब याचिकाएँ [ और ] विराट सार्वजनिक सभाओंके प्रस्ताव असफल हो जायें तब केवल दो मार्ग बच रहते हैं--पहला तो है सशस्त्र विद्रोहका साधारण और मामूली मार्ग और दूसरा मार्ग है देशके सभी कानून या उनमें से कुछ चुने हुए कानूनोंकी सविनय अवज्ञाका तरीका । यदि ये विधेयक केवल ईमानदारी और न्यायसे च्युत होनेके इक्के-दुक्के उदाहरण कहे जा सकते तो फिर मैं परवाह न करता; किन्तु जब स्पष्ट है कि वे दमनकी एक निश्चित नीतिके प्रमाण हैं उस समय सविनय अवज्ञा करना वैयक्तिक तथा सार्वजनिक स्वतन्त्रताके प्रत्येक प्रेमीका कर्त्तव्य प्रतीत होता है। मैंने कल पंडितजीको[२]पत्र लिखकर यह सुझाव दिया है कि प्रवर समितिके सारे भारतीय सदस्य, या उनमें से जितने सदस्य ऐसा करना चाहें वे अपने पदोंसे त्यागपत्र दे दें। यदि वे चाहें तो विधान सभाकी सदस्यतासे भी त्यागपत्र दे दें। मेरे विचारमें उनके त्यागपत्र से सरकारका यह विश्वास तो हिल ही जायेगा कि उसमें जनभावनाकी उपेक्षा कर सकनेकी सामर्थ्य है; साथ ही इससे जनताको एक बहुमूल्य शिक्षा भी प्राप्त होगी। मैं स्वयं यह अनुभव करता हूँ कि यदि विधेयक पास होते हैं तो मैं इसके बाद चुप रहकर ऐसी सरकारके कानूनोंका पालन नहीं कर सकता

  1. भारत सरकार के कानून-सदस्य [ लॉ मेंबर ]।
  2. पंडित मदनमोहन मालवीय।