पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/१२

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कठोरता नहीं रही । मगनलाल गांधीके नाम अपने एक पत्र (१४-८- १९१८) में वे अपने सत्याग्रह सिद्धान्तकी चर्चा करते हुए कहते हैं कि " सत्याग्रह सर्वव्यापक है", यह कोई कोरी बौद्धिक स्वीकृति नहीं है; बल्कि यह इस सत्यकी जीवन्त उपलब्धि है कि मनुष्य का शरीर भी अपनी स्वतन्त्र हस्ती रखता है, उसके अपने नियम हैं और उसके साथ भी हमें सत्य और अहिंसाका वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा कि हम दूसरे व्यक्तियों के साथ करते हैं। इस अनुमतिसे फलित गहरी विनम्रता गांधीजीके इस कालके सारे पत्रोंमें अन्तःसलिलाकी भाँति प्रवाहित है और उन्हें एक ऐसी प्रसन्न प्रौढ़ता प्रदान करती है जो कर्मशीलके बजाय चिन्तनशील व्यक्तिके ज्यादा अनुरूप है । ऐसा मालूम होता है कि आत्माभिव्यक्तिके लिए कर्मका क्षेत्र रुद्ध हो जानेपर गांधीजीने किसी कला-कारकी तरह अपनी नवोपलब्ध अनुभूतिके प्रकाशनके लिए शब्दोंका सहारा लिया है।

शल्य-क्रिया जनवरी १९१९ में हुई और डॉक्टरों तथा मित्रों, दोनोंने ही उनसे दूध फिरसे लेनेका अनुरोध किया। दूधका सेवन उन्होंने अनेक वर्ष पूर्व अपने धर्म-बोधके अनुसार जीवनका शोधन करते हुए दक्षिण आफ्रिकामें छोड़ा था। मित्रोंके इस आग्रहने उनके लिए एक कठिन प्रसंग उपस्थित कर दिया। एक ओर तो वे अपने इस व्रतका शब्दश: और अर्थशः पूरा-पूरा पालन करना चाहते थे और दूसरी ओर उन्हें कस्तूरबा- की व्यथा और भारत तथा मानव जातिकी सेवा करनेकी अपनी दुर्दम आकांक्षा बेचैन कर रही थी । अन्तमें 'अपनी प्रबल जिजीविषा 'की आवश्यकता स्वीकार करते हुए उन्होंने दूध फिरसे लेनेका ही निर्णय किया और अपने तथा मित्रोंके सन्तोषके लिए इस निर्णय के औचित्यका प्रतिपादन भी किया (देखिए 'पत्र : मगनलालको ', १०-१-१९१९ और 'पत्र : नरहरि परीखको', २१-१-१९१९ और २७-१-१९१९) । साथ ही उन्हें इस निर्णय में अपनी कमजोरीका भी शायद अहसास होता रहा । 'आत्मकथा' में (देखिए भाग ५, प्रकरण ३९) इस प्रसंगका उन्होंने जिस स्वरमें स्मरण किया है उससे भी ऐसा ही आभास होता है ।

चिन्तनकी इस मनःस्थितिसे पूरी मुक्ति और कर्मके लिए आवश्यक पूरी शक्ति संचित कर पानेके पहले ही रौलट विधेयक सामने आ गये । लोगोंने उन्हें अपने राष्ट्रीय सम्मानपर आक्रमण माना। गांधीजीने जनतामें व्याप्त रोषकी भावनाको संगठित अभि- व्यक्ति देनेकी कोशिश की । उन्होंने अपने सहकारियोंके साथ प्रस्तावित कानूनका, यदि जरूरी हो कानूनोंकी सविनय अवज्ञा करके भी, डटकर विरोध करनेकी प्रतिज्ञा की । अपनी शारीरिक दुर्बलताके बावजूद उन्होंने देशका लम्बा दौरा किया और इन विधेयकों के खिलाफ लोक भावनाकी प्रबलता स्पष्ट करनेके लिए राष्ट्रके नाम एक सन्देश जारी किया जिसमें लोगोंसे ६ अप्रैल के दिन प्रार्थना और उपवास करके तथा सविनय अवज्ञाकी प्रतिज्ञा लेकर 'सत्याग्रह दिवस' के रूपमें मनानेको कहा गया । बम्बईमें तो यह दिन शान्तिपूर्वक बीत गया । किन्तु पंजाबसे जो खबरें आ रही थीं उनसे वहाँ उपद्रव होनेकी आशंका होती थी । गांधीजी शान्ति-रक्षामें सहायता करनेके उद्देश्यसे ८ तारीख को बम्बई से पंजाब के लिए रवाना हुए । किन्तु उन्हें रास्तेमें ही रोककर हिरा- सत में ले लिया गया। इस खबर के फैलते ही देशमें जहाँ-तहाँ हिंसापूर्ण उत्पात हुए ।