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वातावरण हिंसा और भयसे भर उठा; बात बढ़ती गई और उसकी चरम परिणति हुई अमृतसर के हत्याकांडमें । हत्याकाण्ड १३ अप्रैलको हुआ था; पंजाबमें फौजी कानून थोप दिया गया और फौजी शासनके तहत प्रान्तकी जनतापर निर्दय अत्याचार किये गये । इन सारी घटनाओंने राष्ट्रीय आन्दोलनके परवर्ती इतिहासको नया मोड़ देकर सदा के लिए सत्याग्रह और असहयोगके रास्तेपर चलनेको मजबूर कर दिया । जनता द्वारा हिंसक उपद्रवोंके विस्फोटके प्रति गांधीजीकी प्रतिक्रिया हमें उनकी इस इतिहास प्रसिद्ध स्वीकारोक्ति में मिलती है कि मुझसे हिमालय जैसी बड़ी भूल हो गई है । इस तथ्यपर उन्होंने पूरा वजन दिया कि लोगोंके नाराज होनेके बहुत कारण थे किन्तु आत्मसंयम खो देनेके लिए उन्होंने लोगोंकी भरपूर टीका भी की; इतना ही नहीं, इस भूलके मार्जनके लिए उन्होंने तीन दिनका उपवास भी घोषित किया ।

वाइसरायके निजी सचिवके नाम अपने १४-४-१९१९ के पत्रमें इस बातको मुक्त- भावसे स्वीकार करके गांधीजीने १८ अप्रैलको सत्याग्रहके सविनय अवज्ञावाले अंशको अस्थायी तौरपर स्थगित करते हुए एक अखबारी बयान जारी किया। निजी सचिवके नाम लिखित उस पत्र में उन्होंने अपने कार्यके लिए सत्याग्रहका आधार सदा लेते रहनेकी बात जोर देकर साफ-साफ कही और आशा प्रकट की कि कालान्तरमें सत्याग्रहकी नीति जनता और सरकार, दोनों द्वारा स्वीकार कर ली जायेगी । इसलिए सत्याग्रहको स्थगित करनका अर्थ सत्याग्रहका त्याग नहीं बल्कि बदली हुई परिस्थितिमें उसका रूपान्तर मात्र था।

अब वे 'सत्याग्रह-पत्रिकाओं', भाषणों और वक्तव्यों आदिके द्वारा सत्याग्रहका रहस्य समझाने में जुट गये। उन्होंने बताया कानूनकी सविनय अवज्ञा सत्याग्रहके आच- रणका एक अंश मात्र है, अनुकूल अवसर उपस्थित होनेपर उसका प्रयोग किया जा सकता है लेकिन वस्तुतः वह निरन्तर चलनेवाली आत्म-शुद्धिकी प्रक्रिया है और अपने उपासक से उसकी पहली बड़ी माँग यह है कि वह अपने पड़ोसियोंके कल्याणकी चिन्ता करे और उसकी स्वाभाविक अभिव्यक्तिके रूपमें स्वदेशीके नियमका पालन करे । स्वदेशीके महत्त्वका प्रचार उन्होंने बहुत पहले ही शुरू कर दिया था किन्तु अप्रैलकी घटनाओंके बाद, स्वस्थ और रचनात्मक स्वदेश-प्रेमकी सर्वाधिक प्रभावकारी अभि- व्यक्तिके लिए उसकी उपयुक्तताके कारण, उन्होंने और भी जोरसे उसका प्रचार करना शुरू किया ।

२६ अप्रैल, १९१९ को 'बॉम्बे क्रॉनिकल', के सम्पादक और भारतकी राष्ट्रीय आकांक्षाओंके निर्भीक पुरस्कर्ता बी० जी० हॉर्निमैनको बम्बई सरकारने निर्वासित कर दिया। गांधीजीने लोगोंसे अपनी भावनाओंका संयम करने और ११ मईको शान्तिपूर्ण हड़ताल रखने के लिए कहा। दूसरी ओर शासकवर्गसे वे न्याय और औचित्यका रास्ता अपनानेका अनुरोध करते रहे। सी०एफ० एन्ड्रयूज को अपने ४-५-१९१९ के पत्र में उन्होंने लिखा : "यह रक्तपात, यह जोर-जुल्म, यह फौजी कानून, ये सैनिक ढंगकी सजाएँ -- इन सबके बीच प्रेमका कानून पूरी तरह काम कर रहा है । उसके अपार प्रमाण मिलते रहते हैं ।" (पृ० २८०) उन्होंने माँग की कि " पंजाबके दंगोंके कारणों, पंजाबमें मार्शल