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प्रागजी देसाईको लिखे पत्रका अंश

जो इन दो विधेयकों जैसे पैशाचिक कानून बनाने में समर्थ है । और जो लोग मुझसे सहमत हैं उन्हें मैं इस संघर्ष में अपने साथ शामिल होनेके लिए आमन्त्रित करनेमें संकोच नहीं करूँगा । सम्भव है कि जिस स्थितिको में अपनाना चाहता हूँ उसमें आप मुझसे सहमत न हों । किन्तु मैं जानता हूँ कि आप यह पसन्द नहीं करेंगे कि मैं अपने अन्तःकरण की आवाजको घोट दूं । स्वभावतः मैं अपने उन थोड़ेसे मित्रोंका समर्थन प्राप्त करना चाहूँगा जिनकी सलाह मेरे लिए मूल्यवान है । इसलिए यदि आपके पास समय हो तो मैं चाहूँगा कि आप मुझे एक पंक्ति लिखकर भेज दें; और बतायें कि मेरे सोचे हुए कदमके बारेमें आपका क्या विचार है । मैं यह विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि मैं कोई चीज जल्दीमें नहीं करूँगा और मैं पहले [ सरकार ] को यथाशक्ति नम्र भाषामें निजी तौरपर चेतावनी भी दूंगा ।

मुझे आशा है आगे जो संकटकाल आनेवाला है, उसमें आप बराबर स्वस्थ रहेंगे ।
टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६४३३) की फोटो- नकलसे ।

१०३. प्रागजी देसाईको लिखे पत्रका अंश[१]

[ बम्बई
फरवरी ९, १९१९]


...यदि कोई अपनी बात दृढ़तापूर्वक कहता है तो ऊपरसे देखनेपर लोग कभी- कभी उसे कठोरता मान लेते हैं । लेकिन अच्छी तरहसे देखा जाये तो ऐसी दृढ़तामें ही शुद्ध कोमलता रहती है। काँपते हाथोंसे नश्तर लगानेवाला डॉक्टर अन्ततोगत्वा रोगीको अधिक दुःख देनेवाला साबित होता है; [दृढ़ हाथोंसे] कसकर नश्तर लगानेवाला डाक्टर आरम्भमें भले ही दुःख देनेवाला जान पड़े लेकिन अन्तमें उसकी क्रियासे सुख ही मिलता है । रौलट विधेयकका मेरे ऊपर गहरा असर हुआ है। ऐसा लगता है कि मुझे जीवनकी बड़ी-बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। मैं सलाह-मशविरा कर रहा हूँ। दो-तीन दिनोंमें निश्चय पर पहुँच सकूंगा। तुम जिस प्रवृत्तिमें लगे हुए हो वह भी जैसा तुम कहते हो, एक प्रकारकी लड़ाई है। शुद्ध व्यापारमें भारी पुरुषार्थ है, इसमें मुझे तनिक भी सन्देह नहीं । उसमें सत्य, धीरज, दृढ़ता, सहनशीलता, क्षमा, दया और सन्तोषकी बहुत जरूरत पड़ती है । इन समस्त गुणोंको प्रगट करनेवाला व्यापारी अन्तमें अवश्य ऊँची चोटी तक चढ़ सकता है ।

गुजराती पत्र (एस० एन० ६४२७) की नकलसे ।
  1. प्रागजी खण्डुभाई देसाई, दक्षिण आफ्रिकी संघर्ष में भाग लेनेवाले एक सत्याग्रही । वे बहुधा इंडियन ओपिनियनके गुजराती विभागमें लिखा करते थे ।