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पत्र : ओ० एस० घाटेको

यहाँ मैं एक प्रौढ़ संगीत-शास्त्रीके[१]सम्पर्क में आ रहा हूँ ।

बापूके वन्देमातरम्

[ पुनश्च : ]

महादेव अभी बिजौलिया[२] }}से वापस नहीं आये हैं ।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ६४१६) की फोटो - नकलसे ।

१०६. पत्र : ओ० एस० घाटेको

फरवरी १६, १९१९

आपका मूल्यवान पत्र मिला। मैंने आपको तार[३]}}दिया था कि गृह मंत्रीको पत्र लिखकर मैंने सरकारके निर्णयके बारेमें जानकारी मांगी है। श्री शुएबको मैंने कुछ दिन हुए इसकी सूचना[४]}}दे दी थी और यह मान लिया था कि आपको और हमारे अन्य मित्रोंको उनसे खबर मिल गई होगी। उस समय श्री देसाई मेरे पास नहीं थे, इसलिए मैं यथासम्भव कमसे-कम पत्र लिखता था । मैंने अपने पत्र में शुएब साहबको यह भी बता दिया था कि प्रतिकूल उत्तर आयेगा, तो लड़ाई शुरू हो जायेगी । उस समय मेरा खयाल था कि मेरी तन्दुरुस्ती यह हलचल शुरू कर सकने लायक रहेगी। दुर्भाग्यवश मेरी तन्दुरुस्ती घड़ीके लटकन जैसी इधरसे उधर आ-जा रही है। अभी उसने फिर पलटा खाया है और डॉक्टर कहते कि तीन महीने तक मुझे परिश्रमका खतरा नहीं उठाना चाहिए । मैं तो जल्दी से अच्छा हो जानेका प्रयत्न कर रहा हूँ और अभी तक आशा रखे हूँ कि जबतक दिल्ली से जवाब आयेगा, तबतक में काम करने लायक हो जाऊँगा ।

आपके पत्रसे मुझे रौलट विधेयकोंकी और गहरी जानकारी हुई है। मैं इन विधेयकोंको बिलकुल नापसन्द करता हूँ। अगर ये पास हो गये तो प्रस्तावित सुधार मेरे लिए तो व्यर्थ ही होंगे। देशमें होनेवाली घटनाओंको में बड़े ध्यानसे देख रहा हूँ। मेरा पक्का खयाल है कि अली बन्धुओंको अभी कुछ करनेकी जरूरत नहीं है। उन्होंने अपने परिवारके तीन प्रियजनोंको खोकर जो दुःख पाया है वह हृदयविदारक है। इस समय तो भारत में शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा जिसने अपने प्रियजन न खोये हों। चारों तरफसे

  1. गान्धर्व महाविद्यालयके पण्डित नारायण मोरेश्वर खरे जो आश्रम में संगीतके अध्यापकके रूप में सम्मिलित हुए थे; १९३० में गांधीजीकी दांडी यात्रा में भाग लेनेवाले ८० व्यक्तियों में से एक ।
  2. मेवाड़ राज्यकी एक छोटी-सी रियासत, जो अब राजस्थानका एक भाग है। गांधीजीने बिजौलियाके लोगों की शिकायतोंका अध्ययन करनेके लिए महादेव देसाईको विशेष रूपसे वहाँ भेजा था । एक समय तो गांधीजीने बिजौलियाको जनताकी शिकायतों को दूर करवानेके लिए स्वयं सत्याग्रह आन्दोलन करना स्वीकार कर लिया था ।
  3. उपलब्ध नहीं है ।
  4. देखिए " पत्र : शुएब कुरैशीको ", २४-९-१९१८।