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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लगातार ऐसे ही शोकजनक समाचार आ रहे हैं और भावनाएँ लगभग कुण्ठित हो गई हैं।

हृदयसे आपका
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

१०७. सन्देश : आश्रमवासियोंको

फरवरी १७, १९१९

आश्रम में किसी भी प्रकारका सन्तोष नहीं है । कारण ? मगनलालके आचार-विचार और उनकी बोल-चालके प्रति असन्तोष, व्यवहारमें एक प्रकारका पक्षपात । आश्रमके बारेमें दूसरोंकी अर्थात् पाठशालाके लोगोंकी अश्रद्धा । ऐसी दशामें मेरी क्या स्थिति ?

मुझे आपके सामने कड़े सिद्धान्त रखने हैं। बहनोंको नहीं बुलाया । परन्तु उन्हें भी अरुचि हो गई है। उनका जानेका विचार हो गया है । मैंने उन्हें कह दिया है कि आपने यहाँ जो कुछ प्राप्त किया है, वह और कहीं नहीं मिल सकता । यदि आश्रमका जीवन आपको रास आ सके, तो आप रह सकती हैं। इसलिए विचार करके रहिये या जाइये । असन्तुष्ट होनेके बावजूद आप यहाँ क्यों पड़ी हुई हैं। आप सब कमजोर तो नहीं हैं । तब फिर इसका कारण मेरे प्रति प्रेम और मोह ही है ।

तब पहला सूत्र यह निकलता है कि किसी भी मनुष्यके कार्यसे बाहर उसके प्रति मोह रखना अन्धा मोह है। दक्षिण आफ्रिकामें मुझे ऐसे अन्धे मोहवाले मनुष्य मिले हैं। उनसे मैंने कहा था कि फीनिक्स[१]जो मेरी कृति है, यदि आपको निकम्मा मालूम हो, तो मैं भी निकम्मा हूँ। मेरी कृतिके प्रति अश्रद्धा हो, तो मेरे प्रति अश्रद्धा होनी ही चाहिए । मुझे आदमीकी पहचान है । परन्तु अभी मैं यह सिद्ध नहीं कर सकता। फिर भी, अगर आपको आश्रमके प्रति अश्रद्धा हो, असन्तोष हो तो छोड़कर चले जाइये । जो केवल देनेके लिए ही आये हों, वे रह सकते हैं । अथवा जो लोग गांधीकी बेवकूफी और भूलें बताने आये हों, वे रह सकते हैं । परन्तु ऐसा मुझे कोई दिखाई नहीं देता । सब लेन-देनके आधारपर आये हैं। आश्रमके मूल्यांकनका आधार तो हम सब ही होंगे। मनुष्यकी कीमत हम उसकी कृतिसे बाहर नहीं आँक सकते ।

  1. गांधीजीने अपने सहयोगियों और यूरोपीय मित्रोंकी सहायतासे सन् १९०४ में डर्बनके समीप फीनिक्स आश्रमकी स्थापना की थी। इसका उद्देश्य रस्किन और टॉल्स्टॉयकी मुख्य-मुख्य शिक्षाओंको व्यावहारिक रूप देना और दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी शिकायतें दूर करनेमें सहायता देना था। इंडियन ओपिनियनकाप्रकाशन भी फीनिक्ससे ही होता था।