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सन्देश : आश्रमवासियोंको

दक्षिण आफ्रिकामें मेरी बड़ीसे-बड़ी कृति फीनिक्स है। यह न होती तो दक्षिण आफ्रिकामें सत्याग्रह न होता । यह आश्रम न हो, तो हिन्दुस्तानमें सत्याग्रह नहीं हो सकता । इसमें मेरी भूल हो सकती है । परन्तु भूल हो, तो मैं त्याज्य हूँ । मैं तो देशसे कहनेवाला हूँ कि मेरा मूल्यांकन चम्पारन या खेड़ासे न करके आश्रमसे ही किया जाये । आपको यहाँ कुव्यवस्था, मोह वगैरह लगे तो मेरे सभी कामोंमें आप यही चीज पायेंगे । आश्रममें मैं पहला आश्रमवासी हूँ और जबतक मैं आश्रमके आदर्शोंका पालन कर रहा हूँ, तबतक आश्रम चल रहा है। मैं किसीको नहीं रख सकूँगा, तो अपनी आत्माका शुद्ध निरीक्षण करूँगा, शुद्ध बलिदान देनेका प्रयत्न करूँगा । मुझे आप दूसरी कृतिके आधार पर महत्त्व न दीजिए। मुझे आश्रमसे ही नापिये । आश्रममें मेरी एक कृति मगनलाल है। अपने अनुभवसे मैंने मगनलालमें [ यदि] पचास लाख अवगुण पाये हैं, तो सौ लाख गुण पाये हैं। पोलक मगनलालके सामने बालक है । मगनलालने जो घाव झेले हैं, वे पोलकने नहीं झेले। मगनलालने अपने कार्यकी आहुति दी है, मेरे लिए नहीं, परन्तु आदर्शके लिए । मगनलाल मेरी गुलामी करता है, सो बात नहीं। वह आदर्शके अधीन है । मगनलाल एक बार मुझे सलाम करके जानेको तैयार हो गया था ।

तो, मगनलालको निकालकर मैं आश्रम नहीं चला सकता । ऐसा करूँ, तो मैं अकेला ही आश्रममें रहूँ। जो काम करने हैं, उनमें मगनलालकी पूरी तरहसे आवश्यकता है। उससे बढ़कर मैंने कोई नहीं देखा । उसमें क्रोध, अपूर्णता है, फिर भी वह कुल मिलाकर बढ़िया आदमी है। उसकी ईमानदारीके बारेमें मुझे शंका नहीं । जिस हदतक मगनलाल खराब है, उस हदतक में खराब हूँ, यह बात तो आपको एक सिद्ध सत्य-जैसी मान लेनी है ।

जिस तरह मेरा अपने भाई या माँ-बापसे झगड़ा हो गया हो तो मैं दूसरोंसे कहने नहीं जाऊँगा, उसी तरह जिस संस्थामें हम रहते हों, उस संस्थाके भीतरके किसी आदमीके खिलाफ हमें दूसरी जगह शिकायत नहीं ले जानी चाहिए। किसीके मनमें दूसरे व्यक्तिके प्रति तिरस्कारकी भावना अथवा शंका पैदा हो जाये, तो उसे उसी समय उस व्यक्तिका त्याग कर देना चाहिए। ऐसा करते हुए जब वह संसारको छोड़ देगा तब वह बिलकुल अकेला हो जायेगा और उस स्थिति में या तो वह आत्मघात करेगा अथवा अपनी अपूर्णताओंसे भली-भाँति परिचित होकर तिरस्कारकी भावनासे मुक्त हो जायेगा । हम जिस संस्थामें रहते हों उसके प्रति दूसरोंके सामने तो क्या, अपने मनमें भी बुरी भावना नहीं लानी चाहिए। मनमें ऐसा विचार आये भी तो तुरन्त उसका त्याग कर देना चाहिए। आश्रममें सच्चा आनन्द तो मैं बाहर होऊँ, तभी होना चाहिए। मैं अगर बुजुर्ग हूँ, तो आपको मेरे कथनको ध्यान में रखकर सद्व्यवहार करना चाहिए। इस समय आजादीके साथ आप चाहें जैसा बरताव करें, परन्तु मेरे जाने के बाद तो ऐसा हो ही नहीं सकता ।

मेरे अनुपस्थितिमें एकता न हो, तो मुझमें खामी है और आपको मुझे छोड़ देना चाहिए ।

मैं यदि आश्रमसे असन्तोषकी दशाको दूर कर सकूँ, तो वह मगनलालकी शान्तिके लिए ही होगा; परन्तु मगनलालकी शान्तिके लिए नहीं बल्कि देशके लिए, क्योंकि मगनलालका मैंने देशके लिए बलिदान कर दिया है ।


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