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पत्र : जे० एल० मँफीको

इस तरह की गतिविधियोंसे दूर रहूँगा । किन्तु जो घटनाएँ हालमें घटी हैं, वे मुझे बाध्य करती हैं कि मैं निम्नलिखित बातें महाविभवकी सेवामें विचारार्थ प्रस्तुत करूँ ।

वैसे तो रौलट विधेयकोंपर लिखनेकी मेरी बड़ी इच्छा है, किन्तु इस समय में उसका संवरण कर रहा हूँ। और विधेयकोंके पारित होनेकी तथा उनके खिलाफ देशमें चलनेवाले आन्दोलनकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ। आज मैं अपनेको उसी मामले तक सीमित रखना चाहता हूँ जिसमें मेरी विशेष दिलचस्पी है. और यह मामला अली भाइयोंका है।

आपको याद होगा कि मैंने १९१७ के नववर्ष दिवसपर इनके बारेमें एक निवेदन किया था।[१]वाइसराय इस मामले में हस्तक्षेप भले न करना चाहते हों, फिर भी उन्हें वर्तमान स्थिति सम्बन्धी सार्वजनिक दृष्टिकोण जान लेना चाहिए।

हम दोनोंके बीच अन्तिम पत्रोंके आदान-प्रदानके बाद मैंने सर विलियम विन्सेंट से पत्र-व्यवहार प्रारम्भ किया। इसका परिणाम यह हुआ कि अली भाइयोंके बारेमें सरकारको सलाह देने के लिए एक समिति नियुक्त की गई। इस समितिने अपनी रिपोर्ट सरकारको दे दी है, किन्तु जहाँतक मुझे मालूम है, समितिकी रिपोर्टको दिये हुए दो मास हो जानेपर भी सरकारका निर्णय घोषित नहीं किया गया है। मैंने इस मासकी १२ तारीखको सर विलियम विन्सेंटको इस बारेमें लिखा था । अली भाइयोंकी ओरसे मुझे सूचित किया गया है कि जरूरी कामकाजके लिए तथा अन्य परिस्थितियोंके कारण कुछ-एक स्थानोंमें जानेकी अनुमति प्राप्त करनेके लिए उन्होंने प्रार्थनापत्र दिया था, और उस सिलसिलेमें उनके साथ होनेवाले व्यवहारसे वे अनुमान लगाते हैं कि निर्णय सम्भवतः उनके खिलाफ होगा। मैंने अली भाइयों और समिति के बीच हुए पत्र-व्यवहारको पढ़ा है। मैंने वह पत्र भी पढ़ा है जिसमें उनपर लगाये गये आरोप लिखे हैं। मैंने उनका उत्तर भी पढ़ा है। मैं ऐसा मानता हूँ कि जो आरोप-पत्र अली भाइयोंको दिया गया था वह सब प्रकारसे सम्पूर्ण था। उससे मेरे मनपर यह छाप पड़ी है कि अली भाइयोंको नजरबन्द करना और उन्हें मुसीबतोंमें डालना जरा भी न्यायसंगत नहीं है। मेरी नम्र रायमें उनपर जो आरोप लगाये गये हैं, वे ऐसे नहीं हैं कि अली भाइयोंपर भारत प्रति- रक्षा अधिनियमके अन्तर्गत कार्रवाई की जाती। मेरा निवेदन है कि किसी स्वतन्त्र सरकारके अन्तर्गत वे शासनके लिए खतरनाक न समझे जाते, बल्कि उन्हें महत्त्वपूर्ण दर्जा मिलता। वे बहादुर हैं, निष्कपट हैं, स्पष्टवादी हैं, ईश्वरसे डरते हैं और योग्य व्यक्ति हैं। मुसलमान और हिन्दू उनका समान रूपसे आदर करते हैं। सम्पूर्ण भारतमें हिन्दू और मुसलमानोंकी संयुक्त संस्कृतिका उनसे उत्तम प्रतीक ढूंढ़ना कठिन होगा। उत्तेजित करने योग्य परिस्थितिमें उन्होंने अद्भुत आत्मसंयम तथा धैर्य दिखलाया है। उनके इन्हीं गुणों को, मालूम पड़ता है, अपराध समझ लिया गया है। वे इससे कहीं बेहतर व्यवहारके योग्य हैं।

मुझे एक तथ्य लॉर्ड चेम्सफोर्डको बताना ही होगा, यद्यपि ऐसा करनेसे मेरी शालीन- ताकी भावनाको आघात पहुँचता है। दिसम्बर, १९१७ में मुस्लिम लीगकी कलकत्तेमें जो बैठक हुई थी उसके बाद से अबतक वे बिना आगा-पीछा किये मेरी सलाह मानते रहे हैं। प्रमुख मुसलमानोंने भी इसी प्रकार मेरी सलाह मानी है, अन्यथा उन्होंने बड़ी आसानीसे

१५-७

  1. १.यह स्पष्ट रूपसे भूल है। “१९१८" होना चाहिए; देखिए खण्ड १४ ।