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१२०. पत्र :के० नटराजनको[१]

फरवरी २५, १९१९

मैं इस पत्रके साथ आपको सत्याग्रहके प्रतिज्ञापत्रकी प्रतियाँ और वाइसरायको अपने तारकी नकल भेज रहा हूँ । मैं जानता हूँ कि आप भी इन विधेयकोंको मेरी ही तरह भयंकर मानते हैं। उनके विरुद्ध अपनाये जानेवाले उपायोंके बारेमें आप मुझसे सहमत न भी हों, फिर भी मैं आशा रखता हूँ कि आप यह प्रतिज्ञा मनमें से बिलकुल निकाल नहीं देंगे। सरकारके अत्याचारोंके विरुद्ध आप नवोदित पीढ़ीको कोई कारगर उपाय नहीं बतायेंगे तो आप ईर्ष्या-द्वेषका दावानल जगा देंगे और बंगालके हिंसा मार्गवाले विचार इतने अधिक फैल जायेंगे कि फिर हम सबको पछताना पड़ेगा । दमन-नीति तभीतक कारगर साबित होती है, जबतक लोग उससे डरते हैं । परन्तु ऐसे भी उदाहरण हैं जब असाधारण दबाव पड़नेपर कायर लोगों तक ने असाधारण हिम्मत दिखाई है। स्वयं कष्ट सहन करना सत्याग्रहका एक अर्थ है । इसमें मैं हमारी संस्कृतिकी वास्तविक भावनाका ही अनुसरण कर रहा हूँ। और जवान देशभक्तोंके सामने ऐसा अमोघ साधन रखता हूँ, जिसे अपनानेपर उन्हें कभी निराशा नहीं हो सकती ।

मेरे भेजे हुए कागजात आप गोपनीय समझें । वाइसरायका जवाब आ जाने के बाद मैं उन्हें प्रकाशित करनेकी अनुमति दे सकता हूँ। वाइसरायको भेजा गया तार तो बिलकुल छापना ही नहीं है। उसकी नकल मैंने आपको इसीलिए भेजी है कि आपकी रायके लिए मेरे दिलमें बड़ी इज्जत है । कृपा करके यह पत्र सर नारायणको[२]भी पढ़ा दें।

दक्षिण आफ्रिकाकी परिस्थितिपर मेरा अखबारोंमें भेजा गया पत्र आप जल्दी ही देखेंगे। शायद इस मामलेमें आप मुझसे सहमत होंगे कि अगर सरकार अपनी मजबूरी जाहिर कर दे, तो हम सत्याग्रह कर दें और दक्षिण आफ्रिकाके अपने देशवासियोंको उस आसन्न विनाशसे बचायें ।"

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई
  1. इंडियन सोशल रिफॉर्मरके सम्पादक।
  2. सर एन० जी० चन्दावरकर; समाज-सुधारक और न्यायाधीश, उच्च न्यायालय, बम्बई; सन् १९०० की लाहौर कांग्रेसके अध्यक्ष