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रौलट विधेयकों का सार

वह सारा कुछ बताया था । उसमें एक भी शब्द ऐसा नहीं था जिससे मालूम पड़ता कि उन्होंने किसी भी परिस्थितिके अन्तर्गत अस्थायी अनुमतिपत्र देना बन्द करनेकी बात मान ली हो। ऐसा करार करनेका उन्हें अधिकार ही नहीं था । वे केवल स्थिति जानने और हमारी सिफारिश करनेके लिए गये थे । आपके पाठकोंको याद होगा कि उन्होंने दक्षिण आफ्रिका से लौटनेके बाद बम्बई में हुई ऐतिहासिक सभामें सार्वजनिक घोषणा की थी कि उन्हें समझौतेके लिए बातचीत करनेका कोई अधिकार नहीं था और उन्होंने किसी भी बातपर अपनी सहमति नहीं दी । भारतीय समाजके प्रतिनिधिके रूपमें मैंने १९१४ के समझौते में भाग लिया था । यदि इस प्रकारका कोई समझौता होता तो यह निश्चित था कि जनरल स्मट्स और मेरे बीच जो बहुत-सी बातें हुईं उनका यह भी एक भाग होता । यह ध्यान देने योग्य है कि जनरल स्मट्स इस समय दक्षिण आफ्रिकामें नहीं हैं। यदि उनसे पूछा गया तो मुझे इसमें जरा भी शक नहीं कि वे कर्नल शाँ द्वारा लगाये गये आरोपका निराकरण कर देंगे ।

तारमें आगे कहा गया है कि सारे संघमें और भी बहुतसे उत्पीड़न हो रहे हैं। खयाल किया जाता है कि हम उन सुधारोंके सन्निकट हैं जो निकट भविष्यमें पूर्ण उत्तरदायी सरकारके रूपमें परिवर्तित हो जायेंगे। श्री अस्वात की करुण अपीलका भारतके पास क्या जवाब है ? संघके सैकड़ों-हजारों लोगोंको अपने प्राथमिक अधि- कारोंकी रक्षा के लिए भारत सरकार तथा भारतके लोगोंसे सहायताकी अपेक्षा करनेका अधिकार है ।

आपका,
मो० क० गांधी


[ अंग्रेजीसे [

बॉम्बे क्रॉनिकल, २७-२-१९१९

१२४.रौलट विधेयकों का सार

[फरवरी २६, १९१९ से पूर्व ]

इन विधेयकोंको काले विधेयकोंका नाम दिया गया है । इनके सम्बन्धमें समस्त हिन्दुस्तान में भारी हलचल हो रही है और ये विधेयक इतने कठोर माने गये हैं कि उनके विरुद्ध सत्याग्रह आरम्भ किया गया है । अनेक स्त्री-पुरुषोंने सत्याग्रहकी प्रतिज्ञा ली है । सत्याग्रह सभाकी स्थापना की गई है और लोगोंको यह प्रतिज्ञा लेनेकी सलाह भी दी गई है। इस प्रतिज्ञाको लेनेका अर्थ यह है कि सत्याग्रही अपनी टेकका पालन करनेकी खातिर अपना सर्वस्व भी होम देने को तैयार है। ऐसी कड़ी प्रतिज्ञा लेनेवाले तथा इसकी सलाह देनेवाले लोगोंके पास ऐसा करनेके ठोस कारण होने चाहिए। यह प्रतिज्ञा की है कि ये विधेयक "अन्यायपूर्ण है।",जनताकी स्वतन्त्रताके सिद्धान्त

१. देखिए अगला शीर्षक।

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