पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/१४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भंग करते हैं" और "मानवके स्वाभाविक हकोंका नाश करनेवाले हैं ।" जनताके सम्मुख इन विशेषणोंके औचित्यको सिद्ध करनेकी जरूरत है और इसका सबूत भी इन विधेयकोंमें ही होना चाहिए [ ताकि वह देख सके कि ] जिन विधेयकोंपर उपर्युक्त विशेषण लागू किये जा सकते हैं उनके अधीन होना अपने मनुष्यत्वको खोकर गुलामी स्वीकार करनेके समान है । और निम्नलिखित सारांश पढ़नेपर जिसके मनपर ऐसी छाप पड़े उसका यह फर्ज है कि वह सत्याग्रहकी प्रतिज्ञा ले। इन विधेयकोंका सार नीचे दिया गया है। इनमें जो खण्ड दोष बतानेकी दृष्टिसे अनावश्यक हैं और जिनका उल्लेख न करनेसे सरकारी पक्षके प्रति किसी प्रकारका भी अन्याय नहीं होता, उनको यहाँ छोड़ दिया गया है । और जो खण्ड हमें बहुत कठोर जान पड़े हैं उन्हें हमने मोटे अक्षरोंमें छापा है । दोनों विधेयक धारासभाके सम्मुख रखे गये हैं और सरकारी 'गजट' में १९१९ के विधेयक सं० १ और विधेयक सं० २ के नामसे प्रकाशित हुए हैं। विधेयक सं० २ साधारण फौजदारी कानूनसे भी आगे बढ़ गया है, ऐसा उसकी भूमिकासे पता चलता है । यह विधेयक अधिक भयंकर लगनेके कारण हम इसका सारांश पहले प्रस्तुत करते हैं ।

१९१९ के विधेयक संख्या २ का सारांश

इस विधेयकका प्रयोजन यह है कि यदि कोई विशेष स्थिति उत्पन्न हो जाये तो सरकारको आम फौजदारी कानूनके अन्तर्गत जितनी सत्ता प्राप्त है, उससे अधिक सत्ता दी जा सके और सरकार उस संकटकी स्थितिमें उस सत्ताका उपयोग कर सके ।

इस विधेयकके सम्बन्धमें सरकारने इंग्लैंडसे सपरिषद् भारत-मन्त्रीकी स्वीकृति पहलेसे ही प्राप्त कर ली है ।

खण्ड १ : इस कानूनका नाम है दण्ड विधि आपातिक अधिकार विधेयक [क्रिमिनल लॉ एमर्जेन्सी पावर्स बिल ] । यह कानून सारे हिन्दुस्तानपर लागू होता है।

जानने योग्य खण्ड

[ खण्ड ३ : ] गवनर-जनरलकी परिषद्‌को जब इस बातका निश्चय हो जाये कि सारे हिन्दुस्तानमें अथवा उसके किसी भागमें अमुक अपराध हो रहे हैं और समाजकी सुरक्षाके लिए तुरन्त कार्रवाई करनेकी आवश्यकता है, तो वह [ भारत-सरकारके ] 'गजट' में विज्ञप्ति प्रकाशित करके यह सूचित कर सकती है कि उस विज्ञप्ति में उल्लिखित हिस्से में यह कानून लागू किया जायेगा ।

खण्ड ४ : जब स्थानीय सरकारको ऐसा जान पड़े कि अमुक व्यक्तिपर इस कानूनकी रू से मुकदमा चलाया जाना चाहिए, तब वह किसी भी सरकारी अधिकारीको आदेश दे सकती है कि वह अधिकारी ऐसे व्यक्तिके विरुद्ध मुख्य न्यायाधीशके सम्मुख फरियाद करे।

ऐसी फरियाद उन अपराधोंके विरुद्ध भी की जा सकती है 'जो 'गजट' में इस आशयकी विज्ञप्ति प्रकाशित होनेके पूर्व हुए हों' कि अमुक क्षेत्रोंमें यह कानून लागू होना चाहिए।