पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/१४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



११५
रौलट विधेयकोंका सार

फरियादमें अपराध, अपराधीका नाम-धाम, अपराधका समय, उसका स्थान और ऐसा अन्य विवरण जिसे फरियाद करनेवाला सरकारी अधिकारी जानता हो, दर्ज करना चाहिए जिससे कि अपराधीको अपने विरुद्ध लगाये गये आरोपोंकी जानकारी प्राप्त हो जाये ।

इस फरियादमें यदि मुख्य न्यायाधीश को उचित जान पड़े तो वह अतिरिक्त जानकारी दर्ज करनेका आदेश दे सकता है और ऐसी फरियाद की एक प्रति अभियुक्तको दी जायेगी ।

५ वें खण्डमें कहा गया है कि अभियुक्तको नोटिस जारी करनेके बाद मुख्य न्यायाधीश मुकदमा चलानेके लिए उच्च न्यायालयके तीन न्यायाधीशोंको नियुक्त करेगा ।

खण्ड ६ : पूर्वोक्त अदालत ऐसा मुकदमा, उक्त प्रान्तमें ऐसी किसी भी जगह चला सकती है जो उसे [ अदालतको ] ठीक जान पड़े । लेकिन गवर्नर जनरलकी परिषद्को यदि न्यायकी खातिर उचित जान पड़े तो नोटिस जारी करके पूर्वोक्त मुकदमेको दूसरी किसी भी जगहपर चलानेका आदेश देनेका अधिकार है ।

खण्ड ९ : [ सरकारी अधिकारीकी ओरसे ] फरियाद होनेके बाद अभियुक्त अधिकसे अधिक दस दिनकी मोहलत मांग सकता है ।

१०वें खण्डमें व्यवस्था की गई है कि जिन गवाहोंकी गवाहियाँ ली जायें, अदालत उनकी गवाहियोंके सार-मात्रको ही दर्ज करनेके लिए बँधी है ।

टिप्पणी : जो वकील नहीं है वह भी इस बातको सहज ही समझ सकेगा कि इस प्रकार गवाहों की गवाहियोंका सार मात्र ही दर्ज करनेसे भारी अन्याय हो सकता है । समस्त गवाहों की तफतीश करनेसे पहले गवाहियोंके किस भागपर कितना बल दिया जाना चाहिए, यह कोई भी न्यायाधीश निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता ।

खण्ड ११ : सार्वजनिक लाभके अथवा किसी गवाहकी रक्षाके विचारसे यदि अदालतको ऐसा महसूस हो कि अदालत में चल रहे मुकदमेकी समस्त कार्रवाईको अथवा उसके किसी भी हिस्सेको प्रकाशित करना उचित नहीं है तो, अदालत उसको प्रकाशित न करनेका आदेश दे सकती है ।

खण्ड १२ : जबतक फरियादीकी ओरसे पेश की जानेवाली गवाहियाँ पूरी नहीं हो जाती तबतक अदालत अभियुक्तसे कोई प्रश्न नहीं पूछ सकती। लेकिन उसके बाद, और अभियुक्त अपने बचाव में प्रमाण पेश करे उससे पहले अदालत उससे पूछेगी कि वह शपथ लेकर अपना बयान देना चाहता है अथवा नहीं, और उसे सूचित करेगी कि यदि वह इस तरह बयान देगा तो वह जिरहका पात्र होगा ।

यदि अभियुक्त शपथ लेकर अपना बयान देने को तैयार हो जाये तो अदालत अभियुक्त से ऐसा कोई भी प्रश्न पूछ सकती है कि जिसके उत्तरसे उसपर लगाया गया आरोप सही साबित हो सके ।

१४वें खण्डमें यह व्यवस्था की गई है कि यदि अदालतके न्यायाधीशोंमें परस्पर मतभेद हो तो जिस निर्णयके पक्षमें अधिक मत होंगे वह निर्णय बहाल रहेगा ।