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रौलट विधेयकोंका सार

भाग ४ और ५

भारत रक्षा अधिनियम के रद्द होनेपर जिन व्यक्तियोंको खण्ड ३७ की रूसे कैदमें रखा गया होगा और जो व्यक्ति स्थानीय सरकारके मतानुसार अमुक अपराधोंसे सम्बन्धित जान पड़ेंगे अथवा जो बंगालके १८१८ के 'स्टेट प्रिजनर्स रेग्युलेशन' की रूसे कैदमें होंगे, वैसे व्यक्ति ऊपर लिखित भाग ३ की व्यवस्थाओंके अनुसार कैदमें हैं ऐसा माना जायेगा ।

इस कानूनकी रूसे जो आदेश जारी किया जायेगा उसमें कोई अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती और जिस व्यक्तिने शुद्ध उद्देश्यसे इस कानूनकी रूसे कुछ भी कार्रवाई की होगी अथवा वैसा करनेका विचार किया होगा, उस व्यक्तिके विरुद्ध किसी भी प्रकारका दावा अथवा फौजदारी या कोई दूसरी कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकेगी । इस कानूनके अनुसार प्राप्त सारी सत्ता दूसरे कानूनोंके अन्तर्गत प्राप्त सत्ताके सिवा दी गई समझी जानी चाहिए ।

सन् १९१९का विधेयक संख्या १

इस विधेयकका मंशा भारतीय दंड संहिता और जाब्ता फौजदारी कानूनमें सुधार करना है । और ये सुधार राज्यके लिए खतरनाक माने जानेवाले कुछ एक कार्योंपर अधिक प्रभावशाली ढंगसे अंकुश रखनेके उद्देश्य से किये गये हैं। इसमें निम्नलिखित नया अपराध भी दाखिल किया है :

कोई व्यक्ति, जिसके कब्जे में राजद्रोहात्मक कागज पत्र होगा अथवा जिसका इरादा उस कागजको प्रकाशित करने अथवा उसका प्रचार करनेका होगा, यदि वह यह सिद्ध न कर सके कि वह दस्तावेज उसके पास किसी विधि-सम्मत कार्यके लिए था तो उसे दो वर्ष तककी कैद होगी या उसपर जुर्माना किया जायेगा या दोनों सजायें साथ मिलेंगी ।

उपर्युक्त खण्डके अनुसार राजद्रोहात्मक कागज पत्रका अर्थ है वह कागज जिसमें ऐसे वाक्य हों अथवा ऐसी ध्वनि हो जिसके द्वारा सम्राट् अथवा सम्राट् द्वारा स्थापित सत्ता अथवा उस सत्ताके अधीन काम करनेवाले नौकरों अथवा उन नौकरोंमें से किसी वर्ग या उसमें से किसी एक व्यक्तिके विरुद्ध [ लोगोंको ] बल-प्रयोग करनेके लिए उकसाया गया हो अथवा सम्राट्के विरुद्ध लड़ाई करनेके लिए भड़काया गया हो, अथवा ऐसे उद्देश्य से शस्त्र आदि इकट्ठे करनेके लिए उत्तेजित किया गया हो ।

टिप्पणी : इसका अर्थ यह हुआ कि यदि किसी निरपराध युवककी जेबमें अज्ञानवश कोई ऐसी पुस्तक अथवा कागजात हों जिन्हें राजद्रोहात्मक माना गया हो, तो जबतक वह यह साबित न कर सके कि उसके हाथमें ये कागजात किसी विधि सम्मत कार्यके लिए थे तबतक वह अपराधी माना जायेगा । इस नये अपराधसे ब्रिटिश न्याय-पद्धतिका एक सिद्धान्त परिवर्तित हो जाता है, वादी अभियुक्तपर अपराध प्रमाणित करे, इसके बदले अब अभियुक्तको अपनेको निर्दोष साबित करना पड़ेगा । [ यदि ] मेरे ऊपर आरोप लगाया जाये तो मैं यह कैसे सिद्ध कर सकता हूँ कि मैंने अपराध नहीं किया ? इसका तो यही अर्थ हुआ कि मुझे जेल जाना पड़ेगा ।

भारतीय दंड-संहितामें बताये गये राज्य-विरोधी अपराधोंके लिए सजा देते समय यदि अदालतको उचित लगे तो वह ऐसा हुक्म जारी कर सकती है कि प्रस्तुत व्यक्ति