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रौलट विधेयकोंका सार


१०वें खण्डके अनुसार गवाहियोंका सारांश न्यायाधीशको रखना था, अब न्यायाधीश अथवा उसके द्वारा नियुक्त मुहर्रिरको पूरी-पूरी गवाही रखनी होगी ।

१२वें खण्डमें यह सुधार होगा कि यदि अभियुक्त अपना बयान न दे तो इस्तगासेकी ओरसे नियुक्त वकील उसपर कोई टीका नहीं कर सकता ।

२१वें खण्डके अनुसार कोई विशेष कारण बताये बिना सरकार [ अभियुक्तसे ] मुचलकेकी माँग कर सकती है । अब उसे विशेष कारण बताना पड़ेगा और अपने कार्यका औचित्य सिद्ध करना होगा ।

खण्ड २३में अधिकारी चाहे जैसे साधनको प्रयोग में ला सकता है । अब अनावश्यक बलका प्रयोग नहीं कर सकता ।

खण्ड २५में बताया गया है कि अभियुक्तके विरुद्ध [जारी किये गये आदेशके सम्बन्धमें ] क्या-क्या जानकारी दी जा सकती है। मूल विधेयकमें ऐसा मालूम होता था कि अभियुक्तके विरुद्ध आदेश जारी करते समय सरकारको, वह जो कुछ भी चाहे, बतानेकी छूट है । अब ऐसा सुधार होगा जिससे सरकार उस आदेशमें सम्बन्धित बातें ही पेश कर सकेगी ।

खण्ड २६ के अनुसार [ सरकारको ] अभियुक्तको तीन वर्षतक नजरबन्द रखनेकी सत्ता प्राप्त थी । अब दो वर्षतक [ नजरबन्द रखनेका ] अधिकार होगा और सत्ताधारीके पास हर बार मामला पेश करना होगा ।

खण्ड ३३में अभियुक्तको साधारण कैदियोंके साथ भी रखा जा सकता है, ऐसी ध्वनि निकलती थी । अब यह स्पष्ट किया गया है कि वैसे कैदीको अलग रखा जायेगा ।

खण्ड ३४ में सरकारी आदेशके बिना अभियुक्तको [ हिरासतमें ] रखनेकी अवधि सात दिनों तककी कर दी गई है।


खण्ड ४० में एक महीने की अवधिको घटाकर २१ दिनोंके लिए कर दिया गया है ।

टिप्पणी : ऊपर लिखे अनुसार प्रवर समितिने जो परिवर्तन सुझाये हैं उनसे इतना तो स्वीकार करना पड़ेगा कि मूल विधेयकमें कुछ सुधार किये गये हैं लेकिन इन सुधारोंके होनेके बावजूद विधेयकके [ मूलभूत ] सिद्धान्त वैसे ही रहेंगे । और इस विधेयकके द्वारा प्रजापर इतना अधिक अत्याचार किया जा सकता है कि माननीय श्री शास्त्रियरके कथनानुसार नई विधान परिषदोंको प्राप्त होनेवाले वृहत्तर अधिकारोंके बावजूद उनके सदस्य कुछ भी टीका-टिप्पणी करते हुए घबरायेंगे और अपनी नाममात्रकी स्वतन्त्रताका उपभोग वे चापलूसी करके ही कर पायेंगे । और यदि यह बात विधान परिषदोंके सदस्योंके विषयमें सही हो सकती है तो असहाय और अज्ञान प्रजाका क्या हाल होगा ? प्रत्येक समझदार भारतीयका यह कर्त्तव्य है कि वह ऐसे भयसे प्रजाको बचाये और यह कर्त्तव्य सत्याग्रह करके ही अदा किया जा सकता है ।

[ गुजरातीसे ]
गुजराती, ९-३-१९१९