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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


नाम लिख दिया जाये। जिस तारीखको हस्ताक्षर लिये जायें वह तारीख भी लिख लेनी चाहिए ।

६. स्वयंसेवक खुद ही हरएक हस्ताक्षरकी तसदीक करे ।
[ अंग्रेजीसे ]

बॉम्बे क्रॉनिकल, १२-३-१९१९

यंग इंडिया,१२-३-१९१९

१२६. पत्र : अखबारोंको

[ फरवरी २६, १९१९][१]

रौलट - विधेयकों के विरुद्ध किये जानेवाले सत्याग्रहकी प्रतिज्ञाका मसविदा साथमें भेज रहा हूँ। जो कदम उठाया गया है, वह हिन्दुस्तान के इतिहासमें, शायद सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है । मैं विश्वास दिलाता हूँ कि यह किसी जल्दबाजीमें नहीं किया गया है । खुद मैंने इसपर विचार करते हुए कई रातें जागकर बिताई हैं। मैंने इस कार्रवाईके परिणामों पर भी अच्छी तरह विचार किया है; साथ ही सरकारकी स्थितिको समझनेका भी समुचित प्रयास किया है । परन्तु इन विचित्र विधेयकोंका मुझे कोई भी औचित्य समझमें नहीं आया। मैंने रौलट-समितिकी रिपोर्ट भी पढ़ी है; उसमें घटनाओंका जो विवरण दिया गया है, वह तो मुझे ठीक लगा। परन्तु उसे पढ़नेके बाद मैं जिन निष्कर्षो पर पहुँचा हूँ, वे समितिके निष्कर्षोंके सर्वथा प्रतिकूल हैं। इस रिपोर्टसे मैं तो यही निष्कर्ष निकालूंगा कि प्रच्छन्न हिंसात्मक कार्रवाइयाँ भारतमें छुट-पुट ही हुई हैं, और उनका आपसमें कोई सम्बन्ध नहीं है। इसके अतिरिक्त उनमें हाथ भी बहुत थोड़े लोगोंका है। फिर भी, मैं यह मानता हूँ कि ऐसे थोड़े लोगोंका होना भी सचमुच समाजके लिए खतरनाक है । परन्तु समस्त भारत और भारतीय जनतापर लागू किये जानेवाले इन विधेयकोंके पास होनेसे सरकारको इतने अधिक अधिकार प्राप्त हो जाते हैं जितने अधिकारों की, वर्तमान परिस्थितियोंका सामना करनेके लिए, कोई आवश्यकता नहीं है, और वास्तवमें यह स्थिति हिंसात्मक कार्रवाई करनेवाले उक्त थोड़ेसे लोगोंकी अपेक्षा ज्यादा खतरनाक है । समितिने इतिहासके इस तथ्यकी बिलकुल उपेक्षा कर दी है कि भारतीय जनता स्वभावसे ही संसारकी सबसे अधिक नम्र और सुशील जाति है ।

अब हम विधेयकोंकी रचनापर विचार करें। जब ये विधेयक पेश किये गये, उसी समय वाइसरायने सिविल सर्विस तथा ब्रिटिश व्यापारिक हितोंके सम्बन्ध में कुछ आश्वासन भी दिये थे । हममें से बहुतोंको वाइसरायके इस भाषणसे बड़ी गम्भीर आशंकाएँ उत्पन्न होती हैं। मैं निस्संकोच होकर स्वीकार करता हूँ कि इन आश्वासनोंका पूरा आशय उद्देश्य मेरी समझ में नहीं आता। अगर उसका अर्थ यह हो कि सिविल सर्विस और ब्रिटिश व्यापारिक हितोंको भारत तथा इसकी राजनैतिक एवं व्यापारिक आवश्यकताओंसे अधिक महत्त्व दिया जायेगा, तो कोई भी भारतीय इस सिद्धान्तको स्वीकार नहीं कर सकता ।

 
  1. १. तारीखका निर्णय महादेवभाईकी डायरी, खण्ड १ के आधार पर किया गया है ।