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१२७. पत्र : 'इंडियन सोशल रिफॉर्मर' को



आश्रम
साबरमती
फरवरी २६, १९१९

सेवामें

सम्पादक
'इंडियन सोशल रिफॉर्मर '

महोदय,

मैंने आपके इस मासको २३ तारीखके अंकमें[१]पटेल विवाह - विधेयक [ पटेल मैरिज बिल ] पर लिखा अनुच्छेद पढ़ा है। मैंने अभीतक इस विधेयकके बारेमें किसीको कोई भेंट नहीं दी, और उन विचारोंको मेरा कहना आंशिक रूपसे ही ठीक हो सकता है। बीमार होनेके कारण मैंने इस विधेयकके सम्बन्धमें विचार नहीं किया था । किन्तु जब बहुत से लोगोंने मुझसे कहा कि मैं विधेयकके सम्बन्धमें अपने विचार प्रकट करूँ तब मैंने विधेयकका अध्ययन प्रारम्भ किया । जैसी कि मेरी आदत है, मैंने सर्वप्रथम विधेयकके प्रवर्तककी स्थितिको समझनेका प्रयास किया । माननीय पटेलने बताया कि विधेयकके बारेमें अपने विचार निश्चित करनेमें मुझे जल्दी करनेकी कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि विधेयकपर सितम्बरसे पहले विचार होनेकी सम्भावना नहीं है । उन्होंने विधेयकके अध्ययनमें मेरी सहायताके लिए श्री दफ्तरीको मेरे पास भेजा । श्री दफ्तरीने मुझे इस विषयपर एक लम्बा और विस्तृत स्मरण-पत्र दिया है। मैं अभीतक इसका अध्ययन नहीं कर सका हूँ, और इस समय मेरे सामने जो कार्यक्रम है उसे देखते हुए मैं कह

 
  1. १. इंडियन सोशल रिफॉर्मरने इस अंकमें बॉम्बे क्रॉनिकलके अहमदाबाद स्थित संवाददाता के खरीतेको उद्धृत किया था । उसमें संवाददाताने लिखा था : " उन्हें (श्री गांधीको) ब्राह्मण, क्षत्रिय, तथा शूद्र समाजोंकी उपजातियोंके पारस्परिक विवाह सम्बन्धमें कोई आपत्ति नजर नहीं आती । उनका विचार है कि यदि राजपूतों, भाटियों, लोहानों तथा पाटीदारोंके बीच परस्पर विवाह अधिक संख्यामें होने लग तो वर्तमान अध:पतित राजपूतोंमें नई शक्तिका संचार हो जाये। विचारको दृष्टिसे मोढ और श्रीमाली बनिया- समाजों के बीच पारस्परिक विवाह होनेमें भी कोई हानि नहीं है, ये विवाह इक्का-दुक्का न होकर नियमित रूपसे होने चाहिए । परन्तु वर्तमान चार वर्णोंको किसी प्रकार भी भंग नहीं करना चाहिए। यह वांछनीय है कि चार मुख्य वर्णोंको जिनमें २२ करोड़ हिन्दू आ जाते हैं संयुक्त कर दिया जाये। इसके लिए आवश्यक है कि केन्द्रसे दूर करनेवाली जो प्रवृत्तियाँ इस समय विभिन्न उपजातियोंको मुख्य जातिसे अलग कर रही हैं, उन्हें समाप्त किया जाये । श्री गांधीने बताया कि अन्तर्जातीय विवाहके शाही परिषद् में प्रवर समिति के पास भेजे जानेपर पंडित मदनमोहन मालवीयने उपर्युक्त संशोधनकी शर्तपर सम्पूर्ण हृदयसे इसके समर्थनका वचन दिया है । अन्त में महात्मा गांधीने ब्राह्मणों और छेदों के बीच जो चौड़ी खाई है उसे स्पष्ट करते हुए प्रगतिके लिए कोई छोटा मार्ग अपनाने के विरुद्ध विवाह प्रथा में सुधारके लिए व्याकुल सज्जनोंको चेतावनी दी ।"