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पत्र : अखबारोंको


नहीं सकता कि इस स्मरण-पत्रका अध्ययन कब कर सकूँगा। इसके लिए पुराने कानूनी मामले देखने होंगे।मैं उक्त अध्ययनके बिना इतना ही कह सकता हूँ कि : मेरे विचारमें इस सम्बन्धमें ब्राह्मणों और ढेढ़ोंके बीच सम्बन्धका प्रश्न तो बिलकुल ही नहीं उठता । ब्राह्मणोंके साथ उनका वहीं सम्बन्ध है जो क्षत्रियों, वैश्यों और शूद्रोंका । विधेयकसे उनकी विशिष्ट अयोग्यतापर किसी प्रकार भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता । यदि विधेयक वर्णाश्रम धर्मपर आघात करनेके लिए बनाया गया है तो वर्णाश्रम धर्म में विश्वास करनेके नाते मुझे इसका विरोध करना चाहिए । मेरे धर्मनिष्ठ मित्रोंने मुझे बताया है कि यह निश्चित रूपसे इस प्रकारका आघात करता है । विधेयकके समर्थकोंने मुझे बताया कि विधेयक वर्णाश्रम धर्ममें बिलकुल हस्तक्षेप नहीं करता; बल्कि वह तो केवल यह माँग करता है कि हिन्दू कानून जिस स्थितिमें ब्रिटिश कालके पूर्व था उसी स्थितिमें उसे प्रतिष्ठित कर दिया जाये । [ ब्रिटिश कालमें ] न्यायाधीशोंने उसकी गलत व्याख्या की है। चूँकि वे उसके बारेमें कुछ जानते नहीं थे, इसलिए पक्षपाती या भ्रष्ट पण्डितोंने उन्हें जो बताया वैसा ही उन्होंने किया। दोनों पक्षोंके पास बड़े योग्य वकील हैं। किसी भी पक्षमें निर्णय दिये बिना मैंने सुझाव दिया है कि विधेयकके प्रभावको उपजातिके पारस्परिक विवाहों तक ही सीमित रखा जाये । कमसे कम प्रथम उपायके रूपमें अत्यधिक उत्साही सुधारकोंको इससे सन्तोष हो सकता है, और इससे माननीय पंडित मालवीय जैसे व्यक्तियों का समर्थन प्राप्त हो सकेगा ।

आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन सोशल रिफॉर्मर, २-३-१९१९

१२८. पत्र : अखबारोंको

सत्याग्रह आश्रम
माघ कृष्ण एकादशी, संवत १९७५
[ फरवरी २६, १९१९]

सम्पादक महोदय,

आपके पाठक-वर्गको यह तो विदित ही होगा कि सत्याग्रह आश्रमके भीतर पिछले दो वर्षोंसे राष्ट्रीय शाला चलाई जा रही है । आजकल इसमें नये विद्यार्थियोंको लेना बन्द कर दिया गया है; इसका मुख्य कारण यह है कि शालामें इस समय जो शिक्षक हैं वे राष्ट्रीय शालाके शिक्षणका स्वरूप पूरा-पूरा समझनेके लिए तैयारी करना चाहते हैं । दूसरे वे संख्या में [ भी ] कम हैं। इस समय इस शालामें कमसे कम पाँच नये शिक्षकोंकी आवश्यकता है । यहाँ समस्त शिक्षा गुजरातीके माध्यमसे दी जाती है। इसलिए यदि उन्हें केवल गुजरातीका ही उच्च ज्ञान हो तो भी काम चलेगा। लेकिन चूँकि ऊँची