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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बहुत मोह होता है और इन दोनोंपर उसे गर्व [भी] होता है। वह तुरन्त ऐसे बलके अधीन हो जाता है और उसका आदर करता है । लेकिन वह आत्मिक-बलको भी पहचानता है और जाने-अनजाने अपनी इच्छाके विरुद्ध भी वह उस बलके अधीन हो जाता है । हम इसी बलको आजमा रहे हैं और यदि वह शुद्ध आत्मिक बल होगा तो हम अवश्य जीतेंगे ।

गुजराती पत्र (एस० एन० ६४५८) की फोटो - नकलसे ।

१३१. भाषण : रौलट विधेयकोंके सम्बन्ध में

दिल्ली
मार्च ७, १९१९

गांधीजी कमजोरीके कारण स्वयं भाषण नहीं कर सके, लेकिन उन्होंने श्री महा- देव देसाईसे अपने भाषणको पढ़ सुनानेके लिए कहा। भाषणमें उन्होंने कहा, मैं इन विधेयकोंके सम्बन्ध में कुछ कहनेकी आवश्यकता नहीं समझता। इन विधेयकोंपर समाचारपत्रोंमें कटु आलोचना हो ही रही है। में तो रौलट बिलोंके रूपमें प्रकट होनेवाली बीमारीको दूर करने के उपायके बारेमें कुछ शब्द कहना चाहता हूँ। यह उपाय सत्या- ग्रह आन्दोलन है जो बम्बई में पहले ही शुरू हो चुका है । अनेक प्रसिद्ध पुरुषों और महिलाओंने प्रतिज्ञापत्र पर हस्ताक्षर किये हैं । सत्याग्रह एक सरल, किन्तु अचूक उपाय है। अलबत्ता उसकी एक शर्त है : सत्याग्रह अपनानेवाले व्यक्तियोंमें योद्धाओंकी वीरता से भिन्न एक उच्चतर कोटिकी वीरता होना जरूरी है। यह सच है कि सैनिक मरनेके लिए सदैव तैयार रहता है, परन्तु साथ ही वह शत्रुको मारनेकी इच्छा भी रखता है । सत्याग्रही संसारके सामने अपने उद्देश्यकी शुद्धता और अपनी माँगकी न्याय्यता सिद्ध करनेके लिए कष्ट झेलने, यहाँ तक कि प्राण उत्सर्ग करनेको भी, सदा तैयार रहता है । ईश्वरमें दृढ़ विश्वास ही सत्याग्रहीका शस्त्र है, और उसका जीवन और सारे कर्म उसी विश्वासपर आधारित हैं । ईश्वरके प्रति इस आस्थामें हत्या या हिंसा अथवा असत्यके लिए कोई स्थान नहीं है । केवल इसी शस्त्र द्वारा भारत इन रौलट बिलोंसे छुटकारा पा सकेगा। मैं सरकारके इस कथनसे सहमत नहीं हूँ कि अराजकतासे निपटनेके लिए ये विधेयक जरूरी हैं । मेरी निश्चित धारणा है कि इन विधेयकोंके परिणाम- स्वरूप अराजकतामें और वृद्धि होगी। यह निश्चित है कि जनता सरकारके कुछ कामोंको नापसन्द किये बिना नहीं रह सकती। उनको दूर करानेके लिए विरोध-सभाएँ करने और सरकार के पास प्रार्थनापत्र भेजनेका सामान्य उपाय काममें लाया गया। इससे कोई परिणाम निकलते न देख, जैसा कि बंगालके अपरिपक्व बुद्धिवाले नौजवानोंने किया, जनतान हिंसाका सहारा लिया था और यह हिंसा देशके लिए अत्यन्त घातक है। स्वयं इन