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१३६. पत्र : जे० एल० मैफीको[१]

लखनऊसे आते हुए गाड़ीमें
मार्च ११, १९१९

प्रिय श्री मैफी,

मैंने अभी-अभी जो तार आपको भेजा है उसकी प्रतिलिपि साथमें नत्थी कर रहा हूँ । एक बिलकुल ही व्यक्तिगत बातके अतिरिक्त मैं उसमें और कुछ जोड़ना नहीं चाहता । दक्षिण आफ्रिकामें सत्याग्रहके दौरान मैंने जनरल स्मट्सको जितने भी पत्र भेजे वे सब मैं उनके निजी सचिव श्री लेनकी मारफत ही लिखा करता था । जब संघर्षने जोर पकड़ा उस समय सरकारके प्रतिनिधि जनरल स्मट्स, और विदेशी लोगोंका प्रतिनिधि में -- इन दोनोंके बीच श्री लेन सच्चे अर्थों में सद्भाव पैदा करनेवाले देवदूतकी तरह काम करते रहे। उनके सरल स्वभाव और सौजन्यके बिना कदाचित् संघर्षका जो सन्तोषजनक परिणाम निकला वह न निकल पाता । क्या मैं आपसे भी वैसे ही सहयोगकी आशा कर सकता हूँ ? इसका कारण यह है कि जिस प्रकार दक्षिण आफ्रिकामें [ मैं श्री लेनको कष्ट दिया करता था ] उसी प्रकार यहाँ भारतमें भी यदि दुर्भाग्यसे संघर्ष लम्बे अर्से तक चला तो मुझे आपको प्रायः कष्ट देना पड़ेगा । और मैं सरकार तथा उन लोगोंको, जिनका प्रतिनिधित्व मैं कर रहा हूँ, परस्पर निकट लानेका कोई भी अवसर हाथसे न जाने दूंगा ।

मैं इस १३ ता० को बम्बई में होऊँगा । मेरा स्थायी पता साबरमती तो है ही, परन्तु फिलहाल यदि मुझे लेबर्नम (रोड), चौपाटी, बंबई, के पतेसे पत्र भेजे जायें तो एक दिन पहले मिल जायेंगे ।

यह कहनेकी आवश्यकता नहीं है कि श्री शास्त्रियरसे मेरी बहुत देर तक बातचीत हुई है । पर इस मामलेमें उनके और मेरे बीच आदर्शोंका भेद है और मुझे हम दोनोंके बीच मतैक्य की कोई गुंजाइश नहीं मिली ।

आशा करता हूँ कि अबतक लॉर्ड चेम्सफोर्डका ज्वर चला गया होगा और उसके सभी प्रभावोंसे वे मुक्त हो चुके होंगे।

इस प्रकारका व्यक्तिगत पत्र मुझे अपने हाथसे ही लिखना चाहिए था, परन्तु अपनी हालकी बीमारीके कारण मैं कई दृष्टियोंसे अशक्त बन गया हूँ। जब मैं लिखता हूँ तब मेरा हाथ काँपने लगता है और बहुत जल्दी थक जाता है। इसलिए मुझे अत्यन्त निजी पत्र-व्यवहारके लिए भी पत्र बोलकर लिखवाने पड़ रहे हैं।[२]

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ६४४९) की फोटो नकलसे ।


  1. नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया में संग्रहीत इस पत्र में “ इलाहाबाद, १२ मार्च, १९१९" लिखा है ।
  2. पत्रका अन्तिम अनुच्छेद गांधीजीके हाथका लिखा हुआ है ।

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