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भाषण : मद्रासमें सत्याग्रहपर

कुछके निर्देशनमें मैंने काम भी किया है । जब सर दिनशा वाछा और बाबू सुरेन्द्रनाथ बनर्जी इस देशके मान्य नेताओंकी पंक्तिमें स्थान पा चुके थे, उस समय मैं बिलकुल बच्चा था । श्री शास्त्रियर एक ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जिन्होंने देशके हित अपना सब कुछ अर्पित कर दिया है। उनकी ईमानदारी, उनकी सचाई तो बस उनकी ही । देश-प्रेममें वे किसीसे कम नहीं हैं। मैं उनके साथ एक पुनीत और अक्षर-बन्धनसे बँधा हुआ हूँ। मेरा जीवन कुछ ऐसा बीता है कि मैं इन दो घोषणापत्रोंके[१] हस्ताक्षरकर्ताओंके प्रति सहज ही आकर्षणका अनुभव करता हूँ । इसलिए इनकी इच्छाओंके विरुद्ध खड़ा होते हुए मुझे बड़े दुःख का अनुभव हुआ है और घोर हृदय-मन्थनके बाद ही में ऐसा कर पाया हूँ । किन्तु, जीवनमें कभी-कभी ऐसे अवसर भी आते हैं जब हमें उस आवाजके निर्देशका पालन करना पड़ता है जो सबसे ऊपर है। वह आवाज है अन्तरात्माकी आवाज, और इसके निर्देशोंके पालनमें यदि हमें दुःखके आँसू बहाने पड़ें. नहीं, इतना ही क्यों, यदि बन्धु-बान्धवों, जन्म- भूमि और जिन्हें हमने प्राणोंके समान प्यारा समझा है, उन सबका विछोह सहना पड़े, तब भी उनका पालन करना ही होता है। क्योंकि इन निर्देशोंका पालन हमारा जीवन-धर्म है । मुझे अपने इस आचरणका औचित्य सिद्ध करनेके लिए इससे अधिक कुछ नहीं कहना है । घोषणापत्रके हस्ताक्षरकर्ताओंके प्रति मेरी श्रद्धा अक्षुण्ण हैं, और सत्याग्रहकी सक्षमता- में मेरा विश्वास इतना दृढ़ है कि मुझे लगता है, यदि प्रतिज्ञा लेनेवाले लोग अडिग रहे तो हम संघर्षके अन्तमें उन्हें दिखा देंगे कि चिन्ता अथवा आशंकाका कोई कारण ही नहीं था । मुझे मालूम है कि घोषणापत्रोंपर कुछ सत्याग्रहियोंके मनमें भी किंचित् क्षोभ है । किन्तु मैं उन्हें बता दूं कि ऐसी कोई बात सत्याग्रहकी भावनाके विरुद्ध है । वैसे में व्यक्तिशः किसी भी सदाशयतापूर्ण मतभेदका स्वागत करता हूँ, और विशेषकर तब जब कि वह किसी मित्रके द्वारा प्रकट किया गया हो; क्योंकि इस प्रकार हमें सावधानी बरतनेकी प्रेरणा मिलती है । हमारे सार्वजनिक जीवनमें आरोप-प्रत्यारोप, व्यंग-आक्षेप- का बड़ा जबरदस्त बोलबाला है, और यदि सत्याग्रह आन्दोलन इन बुराइयोंको दूर करनेमें सहायक सिद्ध होता है-- जैसा कि इसे होना भी चाहिए तो यह इसका एक और वांछनीय परिणाम होगा । मैं सत्याग्रहियोंको इतना और बता देना चाहता हूँ कि उक्त दोनों घोषणापत्रोंके प्रति किसी प्रकारकी क्षोभकी भावना हमारी दुर्बलताकी निशानी होगी। हर आन्दोलनको अपनी अन्तर्भूत शक्तियोंपर निर्भर रहना चाहिए, न कि अपने आलोचकोंकी दुर्बलता तथा मौनपर। यह बात सबसे अधिक सत्याग्रहपर ही लागू होती है ।

अतः, अब हम विचार करें कि सत्याग्रहकी शक्तिका रहस्य क्या है। जैसा कि नाम- से ही स्पष्ट है, सत्यपर आग्रह रखना सत्याग्रह है और व्यावहारिक रूपमें इसका अर्थ होता है प्यार । और प्यारका नियम यह नहीं सिखाता कि हम घृणाका जवाब घृणासे दें और हिंसाका जवाब हिंसा से । उसकी सीख तो यह है कि बुराईका जवाब अच्छाईसे


  1. ये घोषणापत्र सर डी० ई० वाछा, सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी; माननीय वी० एस० श्रीनिवास शास्त्री तथा अन्य नरमदलीय नेताओंकी ओरसे २ मार्चको एवं मद्रास प्रान्तके नरमदलकी ओर में १८ मार्चको जारी किये गये थे ।