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१४५. भाषण : मद्रासमें सत्याग्रहपर[१]

मार्च २०, १९१९

आज इस अपराह्नमें में उन आपत्तियों में से कुछ एकपर प्रकाश डालना चाहता जो सत्याग्रहके विरुद्ध उठाई गई हैं। सर विलियम विन्सेंटने विधेयक सं० २ पर बहस करते हुए कहा कि यह खेदका विषय है कि मेरे जैसे व्यक्तियोंने यह आन्दोलन आरम्भ किया है। इसके बाद बहसका समापन करते हुए उन्होंने यह भी कहा :

...हम केवल यह आशा करनेके सिवा और क्या कर सकते हैं कि इस सत्याग्रह पर अमल नहीं किया जायेगा। श्री गांधी कदाचित् कार्य करते हुए बड़ा आत्म-संयम बरत सकते हैं परन्तु आन्दोलनमें उग्र स्वभावके युवक भी होंगे । सम्भव है वे हिंसा कर बैठें। और फिर उसका विनाशकारी परिणाम निकले । कुछ भी हो, इस धमकीके सामने झुकनेका अर्थ सपरिषद् गवर्नर जनरलकी सत्ताको समाप्त कर देना ही है।

यदि सर विलियमकी हिंसा-सम्बन्धी आशंका सच निकले तो निःसन्देह वह एक विनाशकारी बात होगी। प्रत्येक सत्याग्रहीको इस खतरेसे बचना है। मुझे ऐसी कोई आशंका नहीं है क्योंकि हमारा धर्म हमसे यह अपेक्षा करता है कि हम हर तरहकी हिंसाको त्याग दें और अपने शस्त्रागारमें केवल सत्य और अहिंसाके ही शस्त्र रखें एवं उन्हींका उपयोग करें। निःसन्देह सत्याग्रह आन्दोलन अन्य बातोंके साथ-साथ उन लोगोंको भी हमारे साथ आने और कष्टोंके निवारणार्थ ईमानदारीसे हमारे तरीकोंका अनुसरण करनेका आमन्त्रण है, जो हिंसाकी क्षमतामें विश्वास करते हैं । मैंने अन्यत्र यह बताया है कि रौलट बिलोंका उद्देश्य क्या है । मुझे पक्का विश्वास है कि वे इस उद्देश्यको पूरा करनेमें असफल होंगे। किन्तु सत्याग्रहमें बिलकुल उसी उद्देश्यको पूरा करनेकी पूरी क्षमता है। हमें आशा है कि हम हिंसाकारी दलके सामने सत्याग्रहकी अचूक शक्तिका प्रदर्शन करके और उसे अपनी अटूट शक्तिके उपयोगका काफी मौका देकर उसको भी धीरे-धीरे हिंसाके आत्मघाती तरीकोंसे विरत कर सकेंगे। हम बिलकुल स्पष्ट तौरपर कह रहे हैं कि सुधारके लिए हिंसा कदापि आवश्यक नहीं है, और इसके साथ ही हम उसे अमल करके दिखा भी रहे हैं, फिर भला इससे अधिक प्रभावकारी बात

 
  1. १. यह सभा 'ट्रिप्लिकेन बीच' पर हुई थी और इसकी अध्यक्षता सी० विजयराघवाचारीने की थी। गांधीजीका भाषण उनकी अस्वस्थता के कारण महादेव देसाईने पढ़ा था । अध्यक्ष द्वारा रखा हुआ निम्नलिखित प्रस्ताव सर्वसम्मतिले पास हुआ था : "यह देखते हुए कि भारतमें रौलट विधेयकोंका सर्वसम्मत विरोध किया गया है और एक भी गैर-सरकारी सदस्यने इन बिलोंपर सरकारके साथ मत नहीं दिया, यह आम सभा परमश्रेष्ठ वाइसरायसे उसे गवर्नमेन्ट ऑफ इन्डिया ऐक्टके अपील करती है कि वे इस अधिनियमपर अपनी स्वीकृति न देकर खण्ड ६८ के अधीन महामहिम सम्राट की मंजूरी या नामंजूरीके लिये रोक लें ।"