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भाषण : मद्रासमें सत्याग्रहपर


और क्या हो सकती है ? सर विलियम कहते हैं कि इस आन्दोलनसे अहितकी बहुत सम्भावना है। कहा जाता है कि माननीय पंडित मदनमोहन मालवीयने तत्काल इसका यह उत्तर दिया था कि "हितकी भी है।" मैं इस उत्तरमें इतना सुधार करना चाहूँगा, "केवल हितकी ही । यह राजनीतिमें क्रान्ति करने और नैतिक शक्तिको उसकी पूर्व प्रतिष्ठा देनेका प्रस्ताव है। आखिर सरकार तो शरीर-बलके पूर्ण त्यागमें विश्वास नहीं करती। मैं समझता हूँ कि राष्ट्रपति विलसनने शान्ति सम्मेलनमें राष्ट्रसंघके संविधानको प्रस्तुत करते हुए जो भाषण दिया था, उसमें पश्चिमका, जिसका भारत सरकार प्रतिनिधित्व करती है, सन्देश संक्षेपमें इस प्रकार दिया है :

इस कार्यक्रममें, सैन्य-बल पृष्ठभूमिमें है; परन्तु वह पृष्ठभूमिमें है अवश्य और यदि संसारका नीतिबल पर्याप्त न ठहरा तो सैन्य बल पर्याप्त होगा ।

आशा है, हम इस परिपाटीको उलट देंगे और अपने कामसे यह दिखला देंगे कि नीतिबलके मुकाबलेमें शरीरबल कुछ भी नहीं है और नीतिबल कभी असफल नहीं होता । मेरा दृढ़ विश्वास है कि आधुनिक सभ्यता तथा प्राचीन सभ्यतामें, और मेरा दावा है कि अपने इन गये-गुजरे दिनोंमें भी भारत उसका जीवन्त प्रतिनिधि है, यही मौलिक अन्तर है । लगता है हम, उसके पढ़े-लिखे सपूत नीतिबलकी श्रेष्ठतामें विश्वास खो बैठे हैं। लेकिन ब्रिटिश साम्राज्यको यह हमारी एक अमूल्य देन हो सकती है और इसके बलपर हम जो सुधार चाहते हैं और जिनके शायद हम हकदार हैं, उन्हें अवश्य ले सकेंगे। जब इस तरहके विचारोंमें मेरी श्रद्धा है तब मेरे लिए सर विलियमकी, सपरिषद् गवर्नर जनरलकी सत्ताके पूर्णतः समाप्त होनेकी दूसरी आशंकाका उत्तर देना कठिन नहीं है। निःसन्देह इस आन्दोलनकी योजना ऐसी है कि उससे सरकारके सम्मुख कारगर तरीकेसे यह सिद्ध किया जा सकता है कि उसकी सत्ता अन्तिम रूपसे जनताकी इच्छा पर निर्भर है, न कि शस्त्रबल पर; विशेषतः तब जब यह इच्छा सत्याग्रहके रूपमें व्यक्त की जाती हो और फिर शुद्ध नीतिबलके सामने झुकने से झुकनेवालेका सम्मान और गौरव बढ़ता ही है ।

हमने इस प्रकारके इस आन्दोलनमें शामिल होनेके लिए इस महान् देशके प्रत्येक नर-नारीको आमन्त्रण दिया है; परन्तु जिस आन्दोलनका उद्देश्य दूरगामी प्रभाव उत्पन्न करना हो और जिसकी सफलता इसमें शामिल होनेवाले लोगोंकी पवित्रतापर और आत्मकष्ट सहनकी शक्तिपर निर्भर हो, लोग अपना हृदय टटोलकर और नम्रतापूर्वक आत्म-परीक्षण कर लेनेके बाद ही सम्मिलित हो सकते हैं। मैं सत्याग्रह-सम्बन्धी सभाओं यह चेतावनी देता रहा हूँ कि हरएक व्यक्तिको इसमें आनेसे पहले हजार बार सोचना चाहिए। परन्तु एक बार इसमें आ जानेके बाद उसे इसपर दृढ़ ही रहना चाहिए, फिर चाहे उसे इसका कुछ भी मूल्य क्यों न देना पड़े और यह चेतावनी जितनी बार दी जाये कम है । एक मित्रने कल मेरे पास आकर कहा कि आपने कुछ सत्याग्रही मित्रोंकी सभा में इस आन्दोलनका जो अर्थ स्पष्ट किया है, वह उन्हें मालूम नहीं था; अतः अब वे उससे हटना चाहते हैं । मैंने उन्हें कहा कि यदि उन्होंने प्रतिज्ञापत्रपर प्रतिज्ञाके परिणामोंको पूरी तरह समझे बिना दस्तखत किये हैं तो वे अवश्य हट सकते हैं और में प्रत्येक