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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जानेमें बुराई नहीं मानी। इस प्रकार वे चार आने रोजमें अपना गुजारा कर सके । परिणाम यह हुआ कि जो १०,००० मजदूर उसमें लगे थे, पूरी तरह कामयाब रहे। मैं आशा करता हूँ कि आपकी माँगें उचित हैं । मैं आशा करता हूँ कि आप उस तरीकेसे व्यवहार करेंगे जिसकी मैंने आप लोगोंको राय दी है । उस दशामें, आप भरोसा कर सकते हैं कि आपको सफलता अवश्य मिलेगी। आप इतनी दूरसे मुझसे मिलने आये, मैं आप लोगोंको इस बात के लिए बहुत धन्यवाद देता हूँ । भगवान् आपका कल्याण करे । [ अंग्रेजीसे ] हिन्दू, २१-३-१९१९

१४७. पत्र : अखबारोंको[१]

मद्रास
मार्च २३, १९१९

जैसा कि मैंने बहुत-सी सभाओंमें समझानेका यत्न किया है, सत्याग्रह तत्त्वतः एक धार्मिक आन्दोलन है । वह शुद्धि और तपकी प्रक्रिया है । उसके उद्देश्य स्वयं कष्ट सहकर दुःखोंका निवारण और सुधार करवाना है । इसलिए मैं सुझाव देता हूँ कि १९१९ की विधेयक संख्या २ पर वाइसरायकी स्वीकृतिके प्रकाशनके बाद दूसरा रविवार (छ: अप्रैल) मानभंग-दिवस और प्रार्थना-दिवसके रूपमें मनाया जाये। चूंकि इस अवसरके अनुरूप कोई प्रभावकारी सार्वजनिक प्रदर्शन होना आवश्यक है, इसलिए मैं नीचे लिखी सलाह देता हूँ :

(१) पहली रातके खानेके बाद चौबीस घंटे तक सभी वयस्क लोगोंको उपवास करना चाहिए, बशर्ते कि इसमें स्वास्थ्य या धर्मके कारण कोई बाधा न हो। इस उपवास को किसी भी तरह भूख-हड़ताल न माना जाये और न इसका उद्देश्य सरकारपर किसी भी प्रकारका दबाव डालना समझा जाये । सत्याग्रहियोंके लिए तो इसे, उनकी प्रतिज्ञामें जिस सविनय अवज्ञाकी अपेक्षा की गई है, उसके अनुरूप एक आवश्यक मानसिक एवं नैतिक शिक्षण मानना चाहिए; शेष सबके लिए इसे उनकी आहत भावनाकी गहराईका एक छोटा-सा प्रतीक मानना चाहिए।

(२) उस दिन सार्वजनिक हितके लिए जरूरी कामोंके सिवा बाकी सब काम बन्द रखे जायें। बाजार और रोजगार-धन्धेके दूसरे संस्थान भी बन्द रखे जायें, जिन मजदूरोंको रविवारको भी काम करना पड़ता हो, वे पहलेसे छुट्टी लेकर काम बन्द कर सकते हैं।

मुझे सरकारी नौकरोंसे भी उपर्युक्त दो सुझावोंका पालन करनेका अनुरोध करनेमें कोई संकोच नहीं है । क्योंकि यद्यपि निःसन्देह उनके लिए सही चीज यही है कि वे


  1. सत्याग्रह आन्दोलनके सम्बन्ध में लिखा गया यह पत्र एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया द्वारा प्रचारित किया गया था, और २५-३-१९१९ की अमृतबाजार पत्रिकामें भी प्रकाशित हुआ था ।