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१४९. पत्र : सर एस० सुब्रह्मण्यम् अय्यरको[१]

मार्च २३,१९१९

आपके स्पष्ट पत्रके[२] लिए मैं आपका अतिशय आभारी हूँ । मैं अवश्य आपकी इच्छाओंके अनुसार काम करूँगा । मुझे गलतफहमी नहीं हो सकती और मुझे विश्वास है कि जो मित्र इस काममें मेरे साथ हैं उन्हें भी गलतफहमी नहीं होगी ।

क्या आप कृपया श्रीमती बेसेंटको यह बतायेंगे कि यह आन्दोलन किसी दल- विशेषका आन्दोलन नहीं है । और जो लोग किसी दल विशेषके सदस्य हैं, वे आन्दोलन में शरीक होते ही उस दल विशेषके सदस्य नहीं रह जाते । श्रीमती बेसेंट देखेंगी कि आन्दोलनकी प्रगतिके साथ सत्याग्रही अपनी स्वभावगत कटुता और कर्त्तव्यके प्रति उपेक्षा को भी मिटानेकी कोशिश करेंगे। मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ कि हम उनसे चाहे जितना मतभेद रखें, फिर भी उनकी भारतके प्रति की गई गौरवास्पद सेवाओंके लिए कोई भी भारतीय उनका आभार अनुभव किये बिना नहीं रह सकता ।

मो० क० गांधी:

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० ६४६६) की फोटो - नकलसे ।

१५०. महादेव देसाईके लिए हुए नोट

[ मद्रास
मार्च २३, १९१९][३]

आगे के कामपर चर्चा करनेके लिए आपस में मिले । बम्बईने क्या किया है : समिति । महत्त्वपूर्ण साहित्यका प्रकाशन । बाजारोंका बन्द किया जाना ।

पहले राजनैतिक कानून-भंगको ले लें ।

१. निर्दोष, निषिद्ध साहित्यका मुद्रण और प्रकाशन ।


  1. मद्रास उच्च न्यायालयके अवकाशप्राप्त न्यायाधीश; ऑल इंडिया होमरूल लीगके अवैतनिक अध्यक्ष और एक पुराने कांग्रेसी; उन्होंने १९१७ में श्रीमती बेसेंट और उनके साथी कार्यकर्ताओंकी गिरफ्तारी के विरोधमें 'नाइट' की उपाधि त्याग दी थी और राष्ट्रपति विल्सनको एक पत्र लिखा था । उसी वर्ष उन्होंने एक प्रतिज्ञापत्रका मसविदा तैयार किया था और उसपर हस्ताक्षर किये थे । उसमें उन्होंने दमनकारी कानूनोंके विरुद्ध सत्याग्रह करनेपर जोर दिया था; देखिए बी० पट्टाभी सीतारामैया कृत कांग्रेसका इतिहास ( अंग्रेजी संस्करण), खण्ड १, पृष्ठ १३३ ।
  2. इसमें उन्होंने सत्याग्रह सभाका उपाध्यक्ष बननेका सुझाव अस्वीकार किया था ।
  3. ये नोट सुब्रह्मण्यम् अय्यर को लिखे गये उपर्युक्त पत्रके पीछेकी तरफ लिखे मिले हैं।