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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यह खोजना पड़ता है कि किस तरीकेसे हम सरकारसे अपनी इच्छा मनवा सकते हैं। हमें यह मालूम हो गया है कि आम सभाओंमें भाषण देने और विधान परिषदोंके प्रस्ताव पास करनेसे कोई लाभ नहीं होता। सरकारी बहुमतने निर्वाचित सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई राष्ट्रीय इच्छाको ठुकरा दिया है। ऐसी परिस्थितियोंमें और किन अन्य तरीकोंसे हम अपनी इच्छा सरकारसे मनवा सकते हैं ? प्रह्लादने अपने पिता हिरण्यकशिपुके साथ जो किया वही हमें सरकारके साथ करना चाहिए। हिरण्यकशिपुने अपने बेटेको एक ऐसा हुक्म दिया जो उसकी अन्तरात्माकी आवाजके विरुद्ध था । एक अनुशासित अन्तरात्माकी आवाज ईश्वरकी आवाज होती है और कोई भी मनुष्य जो उसे सुननेसे इनकार करता है, मानवीय प्रतिष्ठाको घटाता है । मेरी अन्तरात्माकी आवाज मुझसे कहती है कि जैसे प्रह्लादने अपने पिताकी आज्ञाके विरुद्ध आचरण किया था वैसे ही हमें भी करना चाहिए; और यदि हमारी अन्तरात्माकी आवाज भी वैसा ही कहे तो हमें भी वैसा ही करना चाहिए। प्रह्लादने अपने पिताकी आज्ञाका उल्लंघन उनके प्रति बिना किसी अनादर-भाव या दुर्भाव या अप्रीतिके किया था। वह अपने पिताकी आज्ञाका उल्लंघन करते हुए भी उनसे प्रेम करता रहा और पिताके प्रति अपने इसी प्रेमके कारण उसने उन्हें उनकी वह गलती बताई जिसका उसने अपने अन्तरात्माके आदेश पर कर्त्तव्य मानकर विरोध किया । यही सविनय अवज्ञा या सत्याग्रह कहा जाता है जिसका अर्थ है सत्यका बल, आत्माका बल । यदि हम सत्याग्रहको स्वीकार कर लें तो हम शारीरिक हिंसाके सिद्धान्तका त्याग कर देंगे। मुझे आशा है कि आप, जो प्रह्लाद के वंशज हैं, मुझे खाली हाथ वापस नहीं भेजेंगे। मुझे अभी एक तार मिला है कि वाइसरायने विधेयक संख्या २ पर अपनी स्वीकृति दे दी है। हमारे सम्मुख आत्मबलका प्रयोग आरम्भ करनेके लिए आत्मानुशासनको कोई कड़ी कार्रवाई करनेसे अधिक अच्छा उपाय दूसरा नहीं हो सकता। मैंने समाचारपत्रोंको एक पत्र भेजकर सुझाव दिया है कि वाइसराय विधेयकोंपर अपनी स्वीकृति दे दें उसके बाद एक इतवार छोड़कर दूसरे इतवारको, जो ६ अप्रैलको पड़ेगा, प्रत्येक वयस्क, स्त्री-पुरुष, जो उपवास कर सकता हो उपवास करे। हमें इस उपवासकी तुलना इंग्लैंडकी उन भूखहड़तालोंसे नहीं करनी चाहिए जो स्त्री-मताधिकारके सम्बन्धमें की गई थीं। यह तो दुःखकी एक अभिव्यक्ति, आत्म-संयमका एक कृत्य और आत्मशुद्धिकी एक प्रक्रिया मात्र है । इससे सत्याग्रहीको सविनय अवज्ञा शुरू करने और निबाहनेका प्रशिक्षण मिलता है । उस दिन आपको समस्त व्यापारिक कामकाज बन्द रखना चाहिए। मैंने तो यह सुझाव भी दिया है कि सरकारी कर्मचारी भी इस आम उपवासमें भाग ले सकते हैं। मैं इस सिद्धांतको पूरी तरह मानता हूँ कि सरकारी कर्मचारियोंको राजनीतिमें भाग नहीं लेना चाहिए; परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वे अपनी अन्तरात्माको आवाजको और राष्ट्रके दुःख या खुशीमें हिस्सा बेंटानेकी अपनी स्वतंत्रताको ही दबा दें । आम सभाएँ करनेमें या उनमें भाषण देते समय हमें सरकार और उसके कानूनोंके बारेमें बोलते वक्त अत्यन्त