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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कल मैंने तंजौरके लोगोंको एक निमन्त्रण दिया जो आज में आप लोगोंको भी देना चाहता हूँ; लेकिन वैसा करनेसे पहले आपने मुझे जो सुन्दर अभिनन्दन, सुन्दर मंजूषा और तमिलमें अभिनन्दनपत्र दिया है, उसके लिए हृदयसे आपको धन्यवाद देता हूँ । चूँकि मैं बहुमूल्य उपहार स्वीकार नहीं करता, इसलिए यह सुन्दर मंजूषा उस ट्रस्ट- को सौंप दी जायेगी जो मुझे आजकल मिलनेवाले सभी बहुमूल्य उपहारोंको रखनेके लिए बनाया गया है। वहाँ इसे बेचकर जो पैसे मिलेंगे उसका किसी राष्ट्रीय कार्यमें उपयोग किया जायेगा ।

अपने अंग्रेजीके अभिनन्दनमें आपने कहा है कि ट्रान्सवाल या दक्षिण आफ्रिकामें आत्माकी अनात्मापर विजयके दर्शन हुए थे । आत्माकी अनात्मापर विजय सम्बन्धी आपके स्वयंके विश्वासकी शीघ्र ही परीक्षा होगी। मेरा निमंत्रण आपको ऐसी परीक्षाका निश्चय ही वैसा अवसर देगा । रौलट विधेयकोंके सम्बन्धमें आप भी शायद उतना जानते हैं जितना कि मैं । उनके बारेमें समझानेकी जरूरत नहीं है । आप चाहेंगे कि ये विधेयक वापस ले लिये जायें । शाही परिषद्के भारतीय सदस्योंने भरसक कोशिश की कि ये विधेयक वापस ले लिये जायें, पर वे असफल रहे। ये विधेयक तो बुरे हैं ही। लेकिन भारतीय सदस्योंकी सर्वसम्मत रायकी जो उपेक्षा की गई, वह तो और भी बुरी चीज है, और इस अन्यायको हटाना हमारा और आपका दायित्व है क्योंकि परिषद्के वे सदस्य हमारे प्रतिनिधि हैं । इसे कैसे हटाया जा सकता है ? इतिहास हमें बताता है कि जब किसी देश के शासकोंने शासित जनताके साथ कोई घोर अन्याय किया तब जनताने हिंसाका सहारा लिया है । इसमें उसे कभी-कभी ऊपरी तौरपर सफलता भी मिली है, लेकिन अक्सर वह पराजित हुई है । लेकिन हिंसाका परिणाम हिंसा ही हो सकता है, ठीक वैसे ही जैसे अन्धकारमें थोड़ा अन्धकार और मिला देनेपर वह अधिक घना हो जाता है । हिंसाका सिद्धान्त लौकिक, पार्थिव, शुद्ध भौतिक है तथा उस मानवका मार्गदर्शन नहीं कर सकता जिसे आत्माके अस्तित्वमें विश्वास हो । यदि आप हिंसाके सिद्धान्तको अस्वीकार कर दें, जैसा कि मुझे विश्वास है आप करते हैं, तब आपको अपनी शिकायतें दूर करानेके लिए अन्य साधनोंपर विचार करना होगा। और यदि उसका अनुवाद करूँ तो कहूँगा 'शठम् प्रति शाठ्यम् ।' इसका एक दृष्टान्त आपको प्रह्लादके उदाहरणमें मिलता है जिसका जिक्र आज किया गया। शायद आप लोगोंमें से कुछ लोग सोचें कि प्रह्लाद कोई ऐतिहासिक व्यक्ति तो है नहीं । वह तो एक कहानी-भर है। इसलिए आज मैं आपको एक जिन्दा उदाहरण दूंगा, जिन्दा इस अर्थ में कि यह घटना हमारे देखते घटी है। इस घटनाकी नायिका जीवित नहीं है । इस वीरांगनाका नाम वलिअम्मा' है । भारतीय माता-पिताकी इस सन्तानका जन्म दक्षिण आफ्रिकामें हुआ था । दक्षिण आफ्रिकाकी अनेक भारतीय नारियोंके साथ ही वह भी उस समय चल रहे सत्याग्रह संघर्ष में शामिल हो गई । यह संघर्ष आठ वर्षसे अधिक समय तक चला। उस बालिकाको अनात्मापर आत्माकी विजय होनेका अत्यन्त प्रबल विश्वास था । इतना विश्वास शायद मुझमें या आपमें नहीं है । उस

१. वलिअम्मा आर० मुन्नुस्वामी मुदलियार । जेलसे रिहा होनेके कुछ ही दिनोंके अन्दर, फरवरी २२, १९१४को ज्वरसे उसका प्राणान्त हो गया ।