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भाषण: सत्याग्रह आन्दोलनपर
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देशके जिन कानूनोंका हम विरोध कर रहे थे, उनकी बारीकियाँ वह बिलकुल नहीं समझती थी । उसके लिए इतना ही पर्याप्त था कि उसके देशके हजारों स्त्री-पुरुष किसी ऐसी चीजके लिए कष्ट सहन कर रहे थे जिसे वह नहीं समझती थी, लेकिन वह यह बात जानती थी, उसे सहज ही यह बात समझमें आ गई थी कि आत्म-पीड़ामें से राष्ट्रका जन्म होता है और इसीलिए उसने दक्षिण आफ्रिकामें कैदी बनकर स्वेच्छासे कष्ट भोगे । उसकी अवस्था १८ वर्षकी थी । उसके दुर्बल शरीरमें अपराजेय आत्मबल था । जेलमें उसे मोतीझरा (टाइफाइड) के कारण रोज ज्वर हो जाता था । उसके जेलके साथियोंने उससे कहा कि वह जुर्माना अदा कर दे। वह जुर्माना अदा करके रिहाई पा सकती थी । लेकिन उसने दृढ़तापूर्वक जुर्माना भरनेसे इनकार कर दिया। उसे जेलमें मर जाना स्वीकार था किन्तु वह वहाँ नहीं मरी । उसे जेलसे रुग्णावस्थामें छोड़ा गया । सजाकी पूरी अवधि भोग चुकनेके बाद ही उसे रिहा किया गया था । छूटने के कुछ दिन बाद ही उसकी मृत्यु हो गई, और जैसे कोई वीरांगना मरी हो, उसकी शहादतपर दक्षिण आफ्रिकाके सम्पूर्ण भारतीय समाजने शोक किया । जेलके दरवाजेके अन्दर पैर रखनेसे पहले वह महज एक अज्ञात गरीब बालिका थी । आज वह अपने राष्ट्रके श्रेष्ठतम व्यक्तियोंकी श्रेणीमें पहुँच चुकी है। मैं आपको इस सुन्दर बालिका वलिअम्माका अनुकरण करनेका निमन्त्रण देने यहाँ आया हूँ ताकि आप सफलतापूर्वक रौलट कानूनका विरोध कर सकें। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि वलिअम्मामें जैसी विश्वास-शक्ति थी, उसका यदि थोड़ा भी अंश मनमें लेकर आप इस प्रश्नका सामना करेंगे, तो आप देखेंगे कि थोड़े ही समयमें ये कानून नष्ट हो जायेंगे ।

इन विधेयकोंने राष्ट्रीय आत्मापर प्रहार किया है, और जो आदेश आत्माको चोट पहुँचायें उनका विरोध करना हमारा पवित्र और सुखद कर्त्तव्य है । हम अपने शासकके केवल इसी कानून या इसी आदेशका विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि इस विरोधके द्वारा हम अपना यह कर्त्तव्य, यह अधिकार प्रकट कर रहे हैं कि जो आदेश नैतिक न हों हम उसके उन सभी आदेशोंका प्रतिरोध कर सकते हैं । और जब हम इन शासकोंकी अनुचित बातोंकी सविनय अवज्ञा करते हैं, तब हम वैसा करके न केवल शासकोंकी, बल्कि समूचे राष्ट्रकी सेवा करते हैं । जहाँ कहीं मैं गया, मुझसे पूछा गया है कि कौनसे कानून, दूसरे कौनसे कानूनोंकी अवज्ञा की जानी चाहिए। आज मैं आपको सिर्फ यही उत्तर दे सकता हूँ कि जिनको भंग करनेमें नैतिक बाधा न हो, ऐसे सभी कानूनोंकी अवज्ञा हम कर सकते हैं । ऐसी स्थिति में आपके लिए यह जाननेकी कोई आवश्यकता नहीं है कि हम किन कानूनोंकी अवज्ञा करें । सत्याग्रही व्यक्तिका उद्देश्य तो यह है कि वह अपने सिरपर जितने कष्टोंका बोझ सँभाल सके सो सब स्वेच्छासे स्वीकार करे । इसलिए आप लोगों में से जो लोग रौलट कानूनको गलत मानते हैं, और जिन्हें सत्याग्रहकी शक्तिमें विश्वास है, उन सबको मैं निमन्त्रित करने आया हूँ कि आप इस प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर करें । लेकिन मैं आपसे कहूँगा कि प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर करनेसे पहले आप हजार बार विचार कर लें । आप [ रौलट ] कानूनको गलत नहीं मानते, अथवा आपमें आत्मबल या इच्छाशक्ति नहीं है, इस कारण यदि आप प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर न करें तो यह कोई असम्मानकी बात नहीं है, और आपके हस्ताक्षर न करनेपर किसी सत्याग्रहीको रोष करनेका अधिकार भी नहीं है; किन्तु यदि एक बार आप हस्ताक्षर कर देते हैं, तो