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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

याद रखें कि जिस प्रकार इस गरीब वलिअम्माने अपनी बीमारीके बावजूद कैदकी पूरी सजा काटी थी, उसी प्रकार आप भी अपनी प्रतिज्ञासे नहीं डिगेंगे ।

यहाँ आनेवाले आजके समाचारपत्रोंमें आपने देखा होगा कि मैंने अखबारोंमें अपनी एक चिट्ठी छपवाई है जिसमें कुछ सुझाव दिये गये हैं । फिर भी, मैं उन्हें यहाँ एक बार फिर दोहरा रहा हूँ। मेरा पहला सुझाव है कि अगले रविवार (अर्थात् अप्रैलकी छठी तारीख) को हम सब लोग २४ घंटेका उपवास रखेंगे। कानूनोंकी अवज्ञा प्रारम्भ करनेसे पहले सत्याग्रहीके लिए उपवास तो एक योग्य तैयारीके समान ही होगा । अन्य सब लोगोंके लिए यह सरकार द्वारा किये गये अन्यायपर शोक की अभिव्यक्ति होगा। मैंने इस आन्दोलनको शुद्ध धार्मिक आन्दोलन माना है, और उपवास हमारे यहाँकी एक प्राचीन प्रथा है। आप इसे भूख-हड़ताल न समझ बैठें (हँसी) और न इसे सरकारपर दबाव डालनेका तरीका मानें। यह आत्मानुशासनका एक तरीका, आत्माकी वेदनाको अभि- व्यक्ति है; और आत्माको पीड़ा पहुँचती है तब वह दुर्जेय हो जाती है। मुझे आशा है कि धार्मिक आपत्ति या शारीरिक दुर्बलताके कारण जो उपवास न कर सकें उन्हें छोड़ कर शेष सारे वयस्क व्यक्ति उपवास करेंगे। मैंने सुझाव दिया है कि उस रविवारको सब कारोबार बन्द रहे, सारे बाजार और व्यापारिक संस्थान बन्द रहें। इन दोनों कार्योंका आध्यात्मिक महत्त्व तो है ही । इसके अलावा जनताको प्रशिक्षित करनेकी दृष्टिसे भी इनका बहुत महत्त्व होगा । मैंने अपने सुझावोंमें सरकारी कर्मचारियोंको भी शामिल करनेका दुस्साहस किया है, क्योंकि हमें मानना चाहिए कि आत्मा उनके भी है, साथ ही यह भी कि जिस अन्यायके विरुद्ध राष्ट्र अपना रोष व्यक्त करना चाहता है उसी अन्यायमें सहयोग देनेकी उनमें क्षमता है, वैसा करनेका उनका अधिकार है, और उसके लिए वे स्वतन्त्र हैं । यह उचित ही है कि वे राजनीतिक सभाओं और राजनीतिक चर्चा में भाग न लें, लेकिन उनकी निजी आन्तरिक भावनाओंकी स्वच्छन्दता तो होनी ही चाहिए। मेरा तीसरा सुझाव जिसमें सरकारी कर्मचारी चाहें तो भाग न लें, यह है यदि सम्भव हो तो हम हर बस्तीमें जायें और सभाएँ करके प्रस्ताव पास करें जिसमें भारत-मन्त्रीसे माँग की जाये कि वे इस कानूनको रद कर दें। एक खास कारण न होता तो में आपसे सभाएँ करने और प्रस्ताव पास करनेको न कहता, वह कारण यह है कि इन सभाओं और प्रस्तावोंके पीछे राष्ट्रीय इच्छाको कार्यरूप देनेकी सत्याग्रहकी शक्ति निहित है । आप सत्याग्रही हों अथवा नहीं, लेकिन अगर आप रौलट कानूनको गलत मानते हैं तो इन तीनों सुझावोंमें आप सब शामिल हो सकते हैं, और मुझे आशा है कि सम्पूर्ण भारतमें मेरे आह्वानका ऐसा व्यापक उत्तर मिलेगा कि जो सरकारको यह माननेपर विवश कर देगा कि हमारे बीच जो कुछ हो रहा है उसके प्रति हम जागरूक हैं ।

आपने जिस धैर्यके साथ मेरी बातें सुनीं, इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ । जिन विविध तरीकोंसे आपने मुझपर अपने स्नेहकी वर्षाकी है उसके लिए भी सहस्र धन्यवाद। किन्तु मैं अपनी पूरी शक्ति लगाकर आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप अपने इस व्यक्तिगत स्नेहको वास्तविक कार्यमें परिणत करें, और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि जो लोग इस आन्दोलनमें शामिल होंगे वे उसमें तपनेके