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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दोहरा अन्याय किया है, और यह आपका, मेरा कर्त्तव्य है, इस देशके प्रत्येक स्त्री और पुरुषका कर्त्तव्य है कि उसके पास जितने भी वैध उपाय हों उन सबके साथ इसका विरोध करे । इसे समाप्त करानेके जितने भी प्रचलित तरीके थे, सबको आज- माया जा चुका है । हमने प्रस्ताव पास किये हैं; हमने प्रार्थनापत्र भेजे हैं; [ शाही ] परिषद् में हमारे प्रतिनिधियोंने इसे वापस करानेकी भी पूरी कोशिश की; किन्तु हमारी सारी कोशिशें व्यर्थ हो गई। फिर भी हमें किसी-न-किसी प्रकार इस अन्यायका प्रतिकार तो करना ही है, क्योंकि यह ऐसे विषके समान है जो हमारे राजनीतिक जीवनको अन्दर-ही-अन्दर खाये जा रहा है । जब राष्ट्रीय चेतनाको ठेस पहुँचती है, तब वैसी दशामें ठेस खानेवाली जनता या तो हिंसात्मक तरीकोंसे अन्यायका प्रतिकार करती है, अथवा उन तरीकोंका सहारा लेती है जिन्हें मैंने सत्याग्रहका नाम दिया है । मेरा मत है कि हिंसात्मक तरीके अन्तमें बिलकुल असफल सिद्ध होते हैं । फिर वे हमारी जनताके स्वभावसे बिलकुल मेल नहीं खाते । हिंसात्मक तरीके मानवीय गरिमाके अनुकूल भी नहीं हैं। यह कहना कि आज यूरोपमें पशु-बलका ही बोलबाला हैं, कोई जवाब नहीं है। सच्चा पौरुष, सच्ची वीरता अपने अन्दरके पशुको निकाल बाहर करनेमें है, और तभी, केवल तभी, आपकी आत्मिक शक्ति, पूर्णतया खुलकर खेलेगी। यह दूसरी शक्ति, जिसे मैंने विभिन्न स्थानोंपर सत्याग्रह, आत्मशक्ति या प्रेम-शक्ति कहकर समझाया है, प्रह्लादकी कथामें सबसे अच्छे ढंगसे देखी जा सकती है । जैसा कि आप जानते हैं, प्रह्लादने स्वयं अपने पिताके कानूनों और आज्ञाओंकी सविनय अवज्ञा की थी। उसने हिंसाका सहारा नहीं लिया। अपने कार्यकी सचाई में उसकी अडिग आस्था थी। अपने पिताके कानूनोंकी अवज्ञा करके उसने उससे भी बड़े एक कानूनका पालन किया । और इस आन्दोलनमें सत्याग्रहका प्रयोग करते समय हम प्रह्लादके उज्ज्वल और शाश्वत उदाहरणका अनुकरण करेंगे। लेकिन आज हम अनास्थाके युगमें रह रहे हैं। अपने प्राचीन इतिहासके सम्बन्धमें हमारा दृष्टिकोण सन्देहका है और सम्भव है आपमें से बहुतसे लोग प्रह्लादकी कहानीको कोरा किस्सा ही मानते हों। इसलिए आज शाम में आपको दो दृष्टान्त ऐसे दूंगा जो लगभग आपके सामनेके हैं। इनमें से एक घटनाका जिक्र मैंने कल शाम किया था, जिसका सम्बन्ध एक सुन्दर तमिल बालिकासे है । उसकी आयु १८ वर्षकी थी, और एक सत्याग्रही बालिकाके .रूपमें उसकी मृत्यु हुई। वह दक्षिण आफ्रिकामें सत्याग्रह आन्दोलनमें शामिल हो गई थी । यह आन्दोलन आठ वर्ष तक चला। उसे आन्दोलनके दौरान गिरफ्तार करके जेलमें बन्द कर दिया गया । जेलमें उसे मोतीझरा (टाइफाइड) हो गया, और इसी रोगमें वह चल बसी । दक्षिण आफ्रिकामें जो राहतें प्राप्त हुईं उनके बारेमें आप जानते ही हैं। ये राहतें दिलानेका श्रेय उसे और उसके साथी सत्याग्रहियोंको है । फिर वलिअम्माकी ही आयुका एक बालक था जिसका नाम था नागप्पन । उसे भी

१. सामी नागप्पन, सत्याग्रही बालक; जिसे जून २१, १९०९ को १० दिनकी कड़ी कैद की सजा दी गई थी । उसे मरणासन्न अवस्थामें जून ३० को रिहा किया गया । जुलाई ६, १९०९ को उसकी मृत्यु हो गई । देखिए खण्ड ९, पृष्ठ २९७-९८ ।