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भाषण: सत्याग्रह आन्दोलनपर

उसी संघर्षके दौरान जेल भोगनी पड़ी । उसने यह बहस नहीं की कि वह संघर्ष में क्यों शामिल हो। उसे संघर्षके सही होनेका सहज विश्वास था। वह जानता था कि जो उपाय अपनाया गया है वही सच्चा और प्रभावकारी उपाय है ।

दक्षिण आफ्रिकाकी जलवायु उतनी लाभकारी नहीं है जितनी भारतके मैदानी क्षेत्रोंकी । दक्षिण आफ्रिकाकी सर्दी कठोर होती है, और वह सर्दीका ही मौसम था जब नागप्पनको जेल में डाला गया। उसे तम्बुओंमें रखा गया इसलिए मौसमकी कठोरताएँ उसे सहनी पड़ीं। कैदीके रूपमें उसे फावड़ा चलाना पड़ता था । उसके सामने यह विकल्प था कि जब चाहे जुर्माना भर दे और मुक्त हो जाये । लेकिन उसने जुर्माना देना स्वीकार नहीं किया। उसका विश्वास था, जेलके दरवाजेसे गुजरकर ही स्वतन्त्रताके महाद्वारमें प्रवेश किया जा सकता है। नतीजा यह हुआ कि जेल जीवनमें ही ठंड और बुखारका शिकार होकर उसकी मृत्यु हो गई। नागप्पन एक अशिक्षित बालक था जिसके माता- पिता गिरमिटिया मजदूर थे। लेकिन उसका हृदय एक वीरका हृदय था । और आज मैं आप सब स्त्री-पुरुषोंसे कहने आया हूँ कि यदि आप रौलट कानूनको गलत मानते हैं तो प्रह्लाद नहीं, वलिअम्मा और नागप्पनके उदाहरणका अनुकरण करें। लेकिन एक और शर्त है; यही काफी नहीं है कि आप रौलट कानूनको गलत समझते हों। आपको इस [ सत्या- ग्रहके] उपायके प्रभावकारी गुणमें आस्था होनी चाहिए और इसमें जो कष्ट उठाने पड़ें उन्हें झेलनेकी क्षमता होनी चाहिए । लेकिन निश्चय ही आप मुझसे सहमत होंगे कि बिना कष्ट उठाये कोई राष्ट्र आजतक महान् नहीं बना है, चाहे वह दूसरोंके प्रति हिंसा करके हो और चाहे सत्याग्रह द्वारा । सत्याग्रह बुनियादी तौरपर एक धार्मिक शक्ति है । जबतक हमें आत्माकी अखण्ड और अजेय शक्तिमें आस्था नहीं होगी, तबतक हमारे संघर्षकी सफल परिणति नहीं होगी । तब इसमें गलती, आन्दोलनकी या उस शक्तिकी नहीं होगी जिसका वर्णन मैंने अभी किया है। इसकी जिम्मेदारी हमारी आन्तरिक दुर्बलतापर होगी । इसलिए में आप सबसे कहता हूँ कि आप सावधानीसे इस प्रश्नपर विचार करें। लेकिन एक बार प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर कर देनेके बाद आप अपने कन्धोंपर जो भारी दायित्व लेंगे उसे ठीकसे निभायें और विचलित न हों । सत्याग्रहकी प्रतिज्ञामें यह शर्त निहित है कि प्रतिज्ञा करनेवाले लोग उन लोगोंके प्रति अनादरका भाव नहीं रखेंगे जो प्रतिज्ञा करनेमें असमर्थ हों । यदि वे प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर नहीं करते तो या तो वे कानूनोंको ठीक समझते हैं, या इस संघर्षमें उन्हें विश्वास नहीं है और या फिर वे कमजोर लोग हैं। समय बीतने के साथ-साथ हम उन्हें भी अपने संघर्षके पक्षमें कर लेनेकी आशा रखते हैं । अखबारोंके नाम मेरी चिट्ठी आपने देखी होगी । उसमें मैंने सुझाया है कि आगामी रविवारको 'अपमान- दिवस' के रूप में मनायें । मैंने उसमें तीन सुझाव रखे हैं । मैंने कहा है कि उपवास रखा जाये, सारे बाजार, व्यापारिक संस्थाएँ और अन्य सब कारोबार बिलकुल बन्द रहें, तथा समस्त भारतमें सभाएँ करके प्रस्ताव पास किये जायें। प्रस्तावित उपवास भूख- हड़ताल नहीं होगी, बल्कि वह आत्म-निषेधका प्रतीक होगा। इन तीनों चीजों में सत्याग्रही हों या नहीं, सभी लोग भाग ले सकते हैं। मुझे आशा है कि इस पवित्र मदुरई नगरमें सारी आबादी इस पवित्र उपवासमें भाग लेगी । मैंने अभीतक सत्या-