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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी देते तो मैं उसका अनुवाद करवा ही देते । मुझे आशा है कि अब अगली बार अवसर आनेपर, आपका सम्माननीय अतिथि कोई क्यों न हो, आप अपनी मातृभाषा की गरिमाको मान्यता देंगे ।

पूँजी और श्रम

मैं यहाँ विशेष रूपसे 'श्रमिक संघ' [ लेबर्स यूनियन ] के निमन्त्रणपर आया हूँ । मैं समझता हूँ कि इस सभा में ज्यादातर लोग श्रमिक हैं । इसलिए विशेष रूपमें श्रमिकोंसे मैं जो चन्द बातें कहूँगा उसके लिए अन्य लोग मुझे क्षमा करें । मेरी लगभग तमाम जिन्दगी ही श्रमिकोंके बीच गुजरी है । मैं श्रमिकोंकी समस्याओंके बारेमें थोड़ा-बहुत जानता हूँ । मेरा विश्वास है कि मैं श्रमकी गरिमाको पूरी तरह समझता हूँ । मैं यह भी आशा करता हूँ कि इस महत्त्वपूर्ण युद्धके दौरान जो लोग इस विशाल श्रमिक आन्दोलनका नेतृत्व कर रहे हैं वे श्रमिकोंको श्रमकी गरिमाकी अनुभूतिका अवसर देंगे । भारतके नागरिकोंमें श्रमिकोंका स्थान तनिक भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है । और अगर श्रमिकोंमें हम खेतिहरों और किसानोंको शामिल कर लें तब तो हिन्दुस्तानकी आबादीमें बहुत बड़ा बहुमत उन्हींका होगा । यह कोई नई बात मैं नहीं कह रहा हूँ कि भारतका भविष्य, और भारत ही क्या, किसी भी देशका भविष्य उच्च वर्गीय लोगोंपर नहीं, बल्कि साधारण जनताके ऊपर निर्भर करता है । इसलिए यह जरूरी है कि श्रमिक लोग समाजमें अपना महत्त्वपूर्ण दरजा स्वयं पहचानें ।

यह भी जरूरी है कि ऊँचे वर्गके लोग, जो साधारण जनताके मार्गदर्शक हैं, जनताके प्रति अपने दायित्वोंको समझें । यही नहीं, अपने यहाँकी प्रणालीमें हम अनेक दोष पाते हैं, और मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि पश्चिममें श्रमिकों और पूंजीपतियोंके बीच अस्तित्वका जो संघर्ष चल रहा है वैसा संघर्ष हमारे यहाँकी प्रणाली में सम्भव नहीं हो पायेगा । पश्चिमी देशों में श्रमिक वर्ग और पूंजीपतियोंके स्वार्थ एक-दूसरेके लगभग विपरीत हैं । इन दोनोंमें एक-दूसरे के प्रति अविश्वास है । प्राचीन भारतमें ऐसा नहीं था, और मुझे खुशी है कि हमारे यहाँके श्रमिक नेताओंने श्रम और पूँजीके बीच संघर्षका पश्चिमी तरीका नहीं अपनाया । उन्हें मजदूरोंको यह बताना चाहिए कि वे किसी भी प्रकार पूँजीके गुलाम नहीं हैं; उन्हें सिखाना चाहिए कि वे शानके साथ तनकर खड़े हो सकें । उन्हें श्रमिकोंको बताना चाहिए कि वे समझें और अनुभव करें कि अन्ततः वे ही प्रधान शक्ति और उद्योगमें प्रधान सहयोगी हैं । उन्हें अपनी शक्ति अनुभव करनी चाहिए । उन्हें यह भी जानना चाहिए कि पूँजीके बिना श्रम बिलकुल व्यर्थ है । [ उन्हें यह भी समझना चाहिए] कि भारतमें बिना पर्याप्त पूँजीके बड़े औद्योगिक संगठन सर्वथा असम्भव-सी चीज होंगे। इसलिए पूँजीके प्रति अपने दायित्वोंका भी ध्यान रखना चाहिए। भविष्यमें मजदूर लोग बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले हैं । भारतमें, इतना ही काफी नहीं है कि वे अपने संघोंका सुचारु और सन्तोषजनक रूपसे कार्य चलायें। उन्हें अपने संघोंका अलावा दूसरी चीजोंकी ओर भी ध्यान देना जरूरी है । उन्हें समझना चाहिये कि वे एक और बड़ी इकाईके अंग है । यह समझ लेनेसे कि वे साम्राज्यके सदस्य