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भाषण: नागापट्टनम मे

और नागरिक हैं, उनकी गरिमामें वृद्धि होगी। यदि वे ऐसा करेंगे तो वे राष्ट्रीय गतिविधियोंको भी समझने लगेंगे ।

रौलट विधेयक

आज शाम मैं ऐसी ही एक गतिविधिकी संक्षेपमें चर्चा करूँगा । आपको शायद मालूम हो कि सरकारने अभी हालमें एक ऐसा कानून बनानेका इरादा किया है जिसके बारेमें मेरा और सारे देशका यह मत है कि वह राष्ट्रके लिए अत्यन्त घातक है । हममें से प्रत्येकका, चाहे वह किसी वर्गका सदस्य हो, स्त्री हो या पुरुष, यह कर्त्तव्य है कि सरकार जिस कानूनको पास करनेवाली है, उसे समझे । यह अत्यन्त स्वाभाविक है और जरूरी भी है कि यह अपमानकारी कानून समाप्त किया जाये । अतः हमें इस प्रकार कार्य करना है कि हम उसे समाप्त करवाने में सफल हो सकें । हमने सारे भारतमें सभाएँ की हैं, हमने प्रस्ताव पास किये हैं और वाइसरायसे अपील की है कि वे इस कानूनको वापस करा दें । लेकिन इन सारे प्रयत्नोंकी कोई सुनवाई नहीं हुई है । हमारे शासकोंने हमपर दो अन्याय किये हैं । पहला तो यह कि वे एक अत्यन्त हानिकर कानून बनाने जा रहे हैं, और दूसरे यह कि उन्होंने जनमतकी घोर उपेक्षा की है । जब जनताको चोट पहुँचती है और वह क्रुद्ध हो जाती है और यदि वह ईश्वरमें विश्वास नहीं रखती तो वह शस्त्र लेकर अन्यायीसे संघर्ष करती है । यह हिंसाका सिद्धान्त है । कुल मिलाकर भारतने इस सिद्धान्तको स्वीकार नहीं किया है । इसलिए भारतने आत्माकी सुनिश्चित विजयमें विश्वास रखा है । भारतने ईश्वरमें और उसके न्यायमें आस्था रखी है, और इसलिए परीक्षाकी इस घड़ी में हमने ईश्वरपर भरोसा किया है । जब कोई अन्यायी हमारे ऊपर अन्यायपूर्ण चीजें थोपता है, उस समय उसकी अवज्ञा करना हमारा धर्म है । लेकिन हमें यह विरोध उसी रूपमें करना चाहिए जिस रूपमें प्रह्लादने अवज्ञाके दण्ड-स्वरूप कष्ट सहन करके भी विरोध किया था । उसी प्रकार हमें भी इस मामलेमें करना है, और ऐसे तरीकोंसे विरोध करना है जो हिंसाके तरीको से भिन्न हों । इसीको “ सत्याग्रह" कहते हैं ।

यह स्वयं कष्ट सहनका सिद्धान्त है अतः इसमें पराजय होती ही नहीं । दक्षिण आफ्रिकामें हमारे देशवासियोंने अन्यायोंके विरुद्ध ऐसे ही उदाहरणोंका अनुकरण किया और आप शायद जानते ही हैं कि उन्हें सफलता मिली । उस आन्दोलनमें सभीने हाथ बँटाया, लेकिन उनमें ज्यादातर साधारण लोग ही थे । दक्षिण आफ्रिकामें दो अत्यन्त सुन्दर बालक और एक सुन्दर बालिका थी, जिन्होंने अपने राष्ट्रीय सम्मानकी रक्षाके लिए अपने प्राण दे दिये । आपको उनके पवित्र नाम जान लेने चाहिए, क्योंकि जबतक यह संघर्ष चलेगा और उसके बाद भी उनके नाम रोज याद किये जायेंगे । बालिकाका नाम है वलिअम्मा, और बालकोंके नाम हैं नागप्पन और नारायण सामी । ये तीनों करीब १५ वर्षके रहे होंगे और तीनों ही श्रमिकवर्गमें पैदा हुए थे । न तो उन्हें ढंगकी कोई शिक्षा मिली थी और न उन्होंने 'रामायण' और 'महाभारत' की प्रेरक कहानियाँ ही पढ़ी थीं । किन्तु उनकी रगों में भारतीय रक्त बहता था । कष्ट सहनका नियम उनके दिलमें अंकित था, और मैं यहाँ उपस्थित प्रत्येक व्यक्तिसे अनुरोध करता हूँ कि वे इन दोनों वीर