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१५९सन्देश : मद्रासकी सभाके लिए

मार्च ३०, १९१९

प्रिय श्री रंगास्वामी,

मुझे दुःख है कि आज शामकी सभामें शामिल नहीं हो पाऊँगा । मैंने आन्ध्रके भाइयोंको समय दे दिया है और उसके लिए मुझे बेजवाड़ा जानेवाली रेलगाड़ी पकड़नी होगी । मैंने अभी इस प्रान्तके दक्षिण भागका दौरा समाप्त किया है, और चाहता हूँ कि उसकी मेरे मनपर जो छाप पड़ी है, उसे लिख डालूं और कुछ एक भाइयोंकी कतिपय आलोचनाओं और शंकाओंका उत्तर भी दे दूं ।

मैंने तंजौर, तिरुचिनापल्ली, मदुरा, तूतीकोरिन और नागापट्टनम आदि स्थानोंका दौरा किया है; और कम-से-कम कहूँ, तो इस दौरेमें मैं तीस हजार लोगोंके सामने तो अवश्य बोला होगा । जिन लोगोंको हमें चेतावनी देने और दुःशंकाएँ व्यक्त करने का अधिकार है और जिन्हें मातृभूमिसे उतना ही प्रेम है जितने प्रेमका दावा हम करते हैं, उन्होंने यह अन्देखा जाहिर किया है कि हमारी नीयत चाहे कितनी भी अच्छी हो और हिंसासे बचनेके लिए हम कितने भी सावधान क्यों न हों लेकिन यह खतरा तो मौजूद है ही कि उत्साहितरेकमें इस आन्दोलनमें शामिल होनेवाले लोग पर्याप्त आत्म-संयम न रख पायें और हिंसापर उतर आयें । परिणामस्वरूप अनावश्यक खून खराबी, और उससे भी बढ़कर, राष्ट्रहितकी हानि होगी । आन्दोलन छेड़नेके बाद दिल्लीसे मैंने सभाओंमें भाषण देना आरम्भ किया । फिर में लखनऊ, इलाहाबाद और बम्बई होकर मद्रास आया । इन सब स्थानोंकी सभाओंके अनुभवसे मुझे मालूम हुआ है कि सत्याग्रहके प्रारम्भ होते ही तत्सम्बन्धी सभाओंमें शरीक होनेवालोंकी वृत्तिमें भारी परिवर्तन हो गया है । लखनऊकी बात है कि वहाँ सभापतिने एक घोषणापत्रके सम्बन्धमें बड़े निश्छल ढंगसे दो-चार बातें कह दी थीं । यह घोषणापत्र शाही परिषद् के कुछ सदस्योंके हस्ताक्षरसे जारी किया गया था और उसमें हमारे आन्दोलनसे असहमति प्रकट की गई थी। किन्तु, सभापतिकी बात सुनते ही श्रोता-समूहने बड़े जोरोंसे “शर्म, शर्म ! " की आवाज लगानी शुरू की। इसपर मैंने उन्हें बताया कि सत्याग्रहियोंको और सत्याग्रह - सम्बन्धी सभाओं में जानेवाले लोगोंको ऐसे शब्दोंका प्रयोग नहीं करना चाहिए और हमारी सभाओं में दिये जानेवाले भाषणोंके बीच पसन्दगी या नापसन्दगी प्रकट करनेवाली ऐसी आवाज नहीं लगानी चाहिए। श्रोताओंने मेरे कथनका आशय तुरन्त समझ लिया और उसके बाद फिर कभी अपनी सम्मतिका प्रदर्शन नहीं किया । और यद्यपि यह सत्य है कि अन्य स्थानोंकी भाँति इस प्रान्तके शहरोंमें भी लोग मेरे

१. के० वी० रंगास्वामी आयंगार, जो मद्रास सत्याग्रह सभाके तत्त्वावधानमें ट्रिप्लिकेन-तटपर की गई सार्वजनिक सभाके अध्यक्ष थे ।

२. अब इसे मदुरई कहने लगे हैं ।