सलाह कर सकती हो। मैंने हिन्दी अपनानेकी आवश्यकता समझाते हुए जो कुछ कहा है, उसे पढ़ा है या नहीं ?
- अत्यन्त स्नेह-सहित,
तुम्हारा,
बापू
- महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
- सौजन्य : नारायण देसाई
१६२. तार : एस० कस्तूरी रंगा आयंगारको
[ बम्बई
अप्रैल ३, १९१९]
अभी-अभी[२]पहुँचा हूँ । सिकन्दराबादमें गाड़ी छूट गई थी। बैठक[३] बुलानेकी बात सोच घटनासे सत्याग्रहियोंका निश्चय दिल्ली में रहा हूँ । आशा है दिल्लीकी दुखान्त[४] और और दुल-मुल लोग अपनी स्थिति पर पुनर्विचार कठोर हो जायेगा करेंगे । मेरे मनमें किंचित् मात्र सन्देह नहीं कि अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ बने रहने से हम रौलट कानून बल्कि उसके पीछे विद्यमान देंगे । आशा है रविवारको[५] जोशसे वापस करवा सकेंगे; इतना ही नहीं आतंकवादकी भावनाको भी समाप्त कर दिये जानेवाले भाषण रोष अथवा अशोभनीय अनुष्ठान इतना बड़ा और पुनीत है कि रोष उसे धक्का न पहुँचने दिया जाये । स्वेच्छासे आ पड़ने पर रोने चीखनेका अधिकार हमें कामकाजको बन्द करवानेमें करनेके लिए ही किसी प्रकाशित कर सकते हैं । जबरदस्ती न की पर दबाव डाला मुक्त होंगे। हमारा अथवा जोशके प्रदर्शनसे ओढ़ी हुई मुसीबतोंके नहीं है । निश्चय ही जाये । और न उपवास जाये । आप इस तारको
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ६४९६) की फोटो नकलसे ।